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जिनवाणी प्रचारकों का परिचय |
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इस उपयोगी ऐतिहासिक पुस्तकको लखनऊ (सआदतगंज) निवासी खण्डेलवाल दिगम्बर जैन सेठ मांगीलाल जौहरीलालजी गंगवाल प्रसिद्ध व्यापारीने अपने उदार भावसे "वीर" पत्रके ग्राहकोंको भेटमें देनेके लिये प्रकाशित कराया है । इन दोनों धर्मात्मा भाइयोंके चित्र भी अन्यत्र प्रगट किये हैं। आपका कुटुम्ब मूल निवासी मारवाड़ प्रान्त राज्य किशनगढ़ ग्राम करकेड़ीका है । किशनगढ़ के राजा बड़े न्यायवान् हैं व अपनी प्रजाका पुत्रवत् पालन करते हैं । आपके कुटुम्बमें प्रसिद्ध सेट पद्मचन्दजी होगए हैं। उनके दो सुपुत्र थे - एक का नाम इन्द्रभानजी, दूसरेका नाम सुवायारामजी । इन्द्रभानजीके पुत्र का नाम जेठमल व सुवायारामजीके पुत्रका नाम सरदारमलजी था । जेठमलजी बड़े उद्योगी थे । ये २४ वर्षकी आयु में व्यापारार्थ प्रसिद्ध नगर लखनऊ में आए और संवत् १९०४ में सआदतगंज में किरानेकी दुकान खोली । दूकानका नाम जेठमल सरदारमल रक्खा । छः मास पीछे ही जेठमलनीका स्वर्गवास होगया उस समय उनके पुत्र पांच वर्ष के सदासुखजी थे । सरदारमलजी सब काम सम्हालने थे। कालान्तर में सदासुखजीके तीन पुत्र हुए दो तो ये ही दानी सेट मांगीलालजी और जौंहरीलालजी और तीसरे लक्ष्मीचन्दजी । सग्दारमलजीके दो पुत्र हुए व्रजलालजी और सुगनचन्दनी । सब बड़े प्रेमसे दूकानदारी करते हुए धर्मसाधन करते थे । संवत् १९५९ में दूकानका नाम जेठमल सदासुख रखा गया जो अबतक प्रचलित है । संवत् १९६२में सेठ लक्ष्मीचन्दजी और