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मदरास व मैसूर प्रान्त । करियप्प दंडनायकने जब वह नरसूनाडपर शासन कर रहे थे तब जैनमंदिरको दान किया ।
(२) नं० ९४ सन् ५५० ? इसी वेगूर ग्राम में एक खंभेपर - श्रीमत् नागत्तरकी कन्या तोन डब्वेने समाधिमरण किया । तालुका चिन्नपाटन - ( ३ ) नं० ७० सन् १०० १
बेरूर ग्राम में एक पाषाणपर लेख है उसका भाव है कि संदिगवाते वंशके श्रीचंद्रसेन मुनिके शिष्य नागसेन गोरने किरि कुन्ड़ में समाधिमरण किया ।
यहां सन् १८९१ में १९७८ जेनी थे ।
(२) कोलार जिला - यहां सन् १८९१ में ८९६ जैनी थे। (१) नोन मंगल - मालरके दक्षिण - यहां सन् १८९७ में एक जैनमंदिर की नींममें थी और ५वीं शताब्दी के खुदे हुए ताम्रपत्र व कुछ मूर्तियें तथा कुछ वाने मिले थे ।
(२) नंदिडुग - कोलार से पश्चिम एक किले सहित पहाड़ी-यह ४८५१ फुट ऊंची है । यह किला दूसरीसे ११वीं शताब्दी तक गुंगराजाओं का, जो जैन थे, दृढ़ आश्रय स्थान था । उनकी उपाधि थी नंदगिरिके स्वामी । यह बंगलोरसे उत्तर ३१ मील है । इसके उत्तर पूर्व में गोपीनाथ पहाड़ी है, इसपर एक प्राचीन जैन शिलालेख है जिसमें प्रथम तीर्थंकर श्रीऋषभदेवकी भक्ति में गंग राजाने दान किया है ऐसा लेख है ।
एपीग्रैफिका करनाटिका जिल्द १० में यहांके कुछ जैन शिलालेख हैं, वे नीचे प्रमाण हैं
तालुका मालुर - (१) नं० ७२ सन् ४२५ ई० । नोनमंगलमें