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प्राचीन जैन स्मारक ।
शिकारपुर तालुकाके मलवल्ली में शतकरणी शिलालेख मिला है । इसे यहांका इतिहास मौर्य समयसे लेकर कादम्बोंतक पूर्ण हो जाता है । कादम्बों की उत्पत्ति व उनकी वृद्धिका प्रमाण तालकुंड ता० के तालकुंडके स्तंभके लेखसे प्रगट है तथा पल्लवोंका सच्चा हाल कोलार जिलेके बोवेरी ताम्रपत्रोंसे प्रगट होता है । मैसूरप्रांत के शिलालेखों से भूले हुए महाबली वंश, बाणवंश तथा मैसूर में दीर्घ काल तक राज्य करने वाले गंगवंशका इतिहास प्रकाश में आगया है ।
चोलोंकी वंशावली भी निश्चित होगई है, होयसाल वंशी राजाओंके निर्मित मकान जान लिये गए हैं इन सबसे विस्तार पूर्वक इतिहास लिखा जा सक्ता है । सिक्के नगर जिले में इतिहासके पूर्व सिक्के Funch Marked जिनको पुराण प्राचीन संस्कृत लेखकोंने कहा है, मिले हैं । अंध्र समयके बौद्ध सिक्के सन ई० से दो शताब्दी पूर्वसे दो शताब्दी तक के चीतल दुगमें मिले हैं। बंगलोर के पास रोमनसिक सन् ई-से २१ वर्ष पहलेसे सन ५१ तक प्राप्त हुए हैं। होयसालवंश के सिक्के भी मिले हैं । ताड़पत्रपर लिखित ग्रन्थ जो संग्रह किये गए हैं वे सबसे प्राचीन कालके कनडी साहित्यको प्रगट करते हैं ।
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(See Kernatak Sabdanusasan introduction and Bibliathica Carnatica 6 Volums.
मलकलनेरुनें इतिहास से पूर्व समय के पापाण स्मारक मिले हैं। जैन मंदिरोंको यहां वरती कहते हैं । श्रवणबेलगोला के चंद्रगिरिपर से मंदिर द्राविड़ोंके ढंगपर बने हैं। फर्गुसन साहब कहते हैं कि ये मंदिर दक्षिण वैबिलोनिया के मंदिरोंसे मिलते जुलते हैं । मंदिरों के सामने मानस्तम्भ ३० से ५० फुट ऊंचे हैं । श्रीगोमट