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प्राचीन जैन स्मारक ।
अमोघवर्षने शिलहर वंशके कापर्डी लोगोंको कोंकणका राज्य दिया । यह श्रीमहापुराणके कर्त्ता प्रसिद्ध जिनसेनाचार्य जैन गुरुका मुख्य शिष्य था । इसने ७६ वर्ष राज्य किया फिर स्वयं राज्य त्याग वैराग्य धारण किया था । इसका रचित सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ कनमें कविराज मार्ग कवितामें है ।
पीछे के गंगराजा - राचमल्ल प्रथम ( सन् ८६९ ) के समय से गंगोंने अपना ऐश्वर्य फिर जमाया और अबके अंतके राजाओंतक परमानदी उपाधिके साथ सत्यवाक्य उपाधि भी रक्खी। राचमल्लके पीछे नीतिमार्ग, फिर सत्यवाक्य, फिर एरयप्पा फिर प्रतापी बुटुग हुआ । इसके पीछे भारसिंहने नोलम्बों को नष्ट किया । अंत में राक्षस गंग तथा नीतिमार्ग या गंगराजासे इस वंशका राज्य नीचे लिखी रीतिसे समाप्त हुआ ।
चोलवंश - पश्चिमी चालुक्योंकी शक्तिका पुनरुत्थान २०० वर्षो तक रहा । इसके प्रथम अर्द्धकालमें वे बराबर चोलोंसे युद्ध करते रहे । चोलोंने सन् ९७२ में वेंगीके पूर्वीय चालुक्योंको बिलकुल दबा लिया तब उनका राज्य चोलोंके आधीन हो गया । चोलकुमार गवर्नर होकर शासन करने लगे। इसी समय एक चोलवंशकी राजकुमारी कलिंगदेशके गंगवंशी राजाको विवाही गई थी । सन् ९९७में चोलोंने राजराजाके आधीन मैसूर देशमें पूर्वसे हमला किया फिर १००४ में वे अधिक सेना लेकर आए, उस समय राजराजाके पुत्र राजेन्द्र चोलने तलकाड देश ले लिया । और गंग शासनको मिटा दिया । दक्षिण पूर्वका सब देश ले लिया- अर्कलगुड़से लेकर श्रृंगापटम और नेलमंगल होकर नीदुगल तक क्षेत्र पर कबजा कर लिया ।
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