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मदरास व मैसूर प्रान्त । [ १.५३ गोविंद मा प्रभूतवर्ष ने गंग राजाको छुड़ाया जो उस समय शिवमार था और इसे फिर गद्दीपर बिठाया। नौमी शताब्दी में नृपतुंग या अमोघवर्ष ने बहुत काल तक राज्य किया । इसने कनड़ी व संस्कृत भाषामें पुस्तकें लिखी हैं जिससे प्रगट है कि यह देश व प्रजाके हितपर बहुत ध्यान देता था। एक छोटी संस्कृत की पुस्तकको जिसका यह कर्ता था व जो नीति पर है तिब्बत भाषामें उल्था किया गया है ।
(A small sanskirt work by him on morality was translated Into Tibetan. )
सं० नोट - शायद यह प्रश्नोत्तर - नाममाला हो । इसके आगेके राजाओंका पूर्वी चालुक्योंसे सतत युद्ध होता रहा । १० वीं शताब्दी के मध्य में चोलोंने इनको दबाया । उस समय राष्ट्रकूटों का और गंगों का घनिष्ठ सम्बन्ध था। गंगवंशी बुटुगने राष्ट्रकूट राजकुमारीको विवाहा था । इसने अपने साले कन्नर या अकालवर्षको गद्दीपर बिठाया था और चोल राजा राजादित्यको टक्कल ( अरकोनम के पास ) पर मारकर राष्ट्रकूटोंकी बहुत सेवा बजाई । इसतरह चोलों के हमले को हटाकर बुटुग एक बड़ा राजा मैसूरके उत्तर पश्चिमी जिलोंका माना जाने लगा । कुछ देश इसको बम्बई प्रांत के भी अपनी स्त्रीके दहेज में मिले थे । सन् ९७३ में तैलराजाने पश्चिमीय चालुक्योंकी प्रधानता प्राप्त करली तब राष्ट्रकूटोंके अंतिम राजाने सन ९८२ में श्रवणबेलगोलामें मरण प्राप्त किया ।
सं० नोट - राष्ट्रकूट वंशज गंगवंशजोंके समान जैनधर्मी थे और इसी लिये जैनबड़ी या श्रवणबेलगोलाके भक्त थे । नृपतुंग या अमोघवर्ष बड़ा बलवान जैन राजा था । इसने चालुक्योंको हरा दिया था तब चालुक्योंने इसके साथ विंगुवल्लीपर संधि कर ली थी। इस