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मदरास व मैसूर प्रान्त |
[ १३५ संस्कृत कनड़ी भाषा में यह तीन पत्र मिले हैं। इनपर मोहर है जिसमें जैन मूर्ति है । विजयनगरके राजा देवराजने शाका १३४६ (सन् १४२४) में बरांगलका ग्राम वरांगके श्रीनेमिनाथ मंदिरको दान किया । विक्खा महीपतिका पुत्र राजा हरिहर, इसका पुत्र रेवाराय, इसका पुत्र विजयभूपति भार्या नारायणदेवी उनका पुत्र देवराज ।
दूसरा ताम्रपत्र साउथ कनड़ाकी सब कोर्ट में नं ० ९१ है इसमें है कि किन्निग भृपाल राजाने शाका १५१३ में जैन मंदिर में पूजाके लिये भूमि दान दी। (A. S. of D. India Vol. II. Sewell. ) (१५) बलि साविर् - (१००० बंश ) यह कहावत है कि यहां नन्दावर वंशके १००० कुटुम्ब रहते थे जो अलियासन्तान कानूनको मानते थे ।
(१६) मुद्रादी - मंगलोर से उत्तर ४० मील । यह स्थान जैन चौतर राजाके आधीन वल्लाल राजाका प्राचीन निवास स्थल था । (१७) सूराल - मंगलोर से उत्तर १९ मील । एक जैन राजाका निवास स्थान ।
(१८) बैलनगड़ी - प्राचीन जैन राजा मुलरका वंश - स्थान | (१९) सिसिल - मंगलोर से ४५ मील । अनुमान ११ वीं शताब्दी में यह हमसके जैन वंशके आधीन तुलुव देशकी राज्यधानी थी । यह हूमसवंश पश्चात् कारकलके बेरसा उडियर होगए थे । (२०) धर्मस्थल - मंगलोरसे ३७ मील | यहां के हेडगे जैन 1 वंशवालोंने जमालाबादपर सन् १८०० में इंग्रेजोंकी अच्छी सेवा की थी। (२१) एल्लारे - येरवत्तूर मांगनी में - उडिपी से उत्तर १ मील । जनार्दन मंदिरके भीतरी प्राकार में दो शिलालेख हैं इनमें से