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११६] प्राचीन जैन स्मारक । रकी मूर्तियां हैं। ये दो लाइनमें हैं, एकसौसे ऊपर मूर्तियां हैं, सब बेठे आसन हैं । हरएकका आला दो फुट ऊंचा है, नीचे लेख वहे. लहू भाषामें है । इसी चट्टानपर पांड्य राना मारंजदंजन ( निस राजाके लेख मानूर, गंगदकुन्दान व तिरुक्करुनगुडीपर हैं ) का भी लेख है । इस रानाका नाम वरगुणवमेन था। यह राज्यगद्दीपर सन् ८६२ में बैठे थे।
इन जैन मूर्तियों के पास एक बड़ी गुफा है। यह स्थान टिन्नेवली नगरसे उत्तर २८ मील है।
(3) कुलत्तूर-ता० कोयलपट्टी समुद्रसे ३ मील । औद्यपदारमसे पूर्व १४ मील । यहां एक शूद्र गली में खुले मैदान एक जैन मूर्ति खड़ी है, यह तीन फुट ऊँची है । ग्रामके लोग समणार तेरू कहते हैं। चावल और नारियल चढ़ाते है ।
(४) नंदिकुलम्-ता कोयलपट्टी। विल्लतिकुलम्मे दक्षिण ४. मील । ऊपर के समान एक जैन मृति है ।
(२) वलियर-ता० नंगुनेरी यहां यह प्रसिद्ध है कि पहले जैन मंदिर था। इसके पाषाण एक सरोवर में लगा दिये गए व मूर्तिको यूरोपियन लोग लेगए ।
(६)वीर सिखार्माण-शंकर नरहनार कोयलसे दक्षिण पश्चिम भील। जैनियों की गुफाएं हैं, जैन मूर्तियां अंकित हैं व लेख हैं।
(७) कोरबाई-ता० श्री कुठम् । ताम्रपर्णीनदीके उत्तरतट, नदी मुखसे ४ मोल । तामील पुराणों के अनुसार एक समुद्रका बंदर था। पांड्य राजाओंका मुख्य नगर था। यहां जैन मूर्तियां एक सड़ककी तरफ दूसरे ग्रामके पास हैं।