________________
९६] प्राचीन जैन स्मारक । मुडैलियरके साथ ता० १३ मार्च १९२६ को दर्शनार्थ आए थे। इस मंदिरके ५ कोट थे जिनमें २ कोट प्रगट हैं। द्वारपर व शिखरपर जैन मूर्तियां बहुत प्राचीन अंकित हैं, कुछ खंडित होगई हैं। यहां ४ जैन उपाध्यायोंके घर हैं जो त्रिकाल पूजन करते हैं, रात्रिको आरती करते हैं। इनमें मुख्य हैं-जयपाल, बहुबलि, धनंजय और वर्द्धमान । यहां यह प्रसिद्ध है कि यह मंदिर श्रीरामचंद्रनीके पुत्र लवकुश द्वारा पूजित है जैसा नीचे दिये हुए संस्कृत अष्टकमें भी वर्णित है । प्रतिमा श्री रिषभदेवकी बहुत प्राचीन है। इस प्रतिमाको दीपनायक कहते हैं। वर्ष में एक दफे मेला होता है। इस मंदिरके आश्रय ग्राम हैं । इस मंदिरको मुसलमानोंने नष्ट करना चाहा था परन्तु राजा चित्तरम पूबरसने भले प्रकार मंदिरकी रक्षा की थी।
दीपनायक अष्टकनिसको एक ताड़पत्रकी पुस्तकसे नकल किया गया ।---
देवराज निकाय मौलि शिखा महामणि मालिका । भाविरोचन बाल भानु विकासि पादपयोव्हं ।। केवलावगभावलोकित लोक भो भवने नमो। देव नायक दीप नायक देवी कुटी ते ॥१॥ तावका रहितावसान दया गुणाणण धिना । तावका गणनायका मग्नायक, अपिते नुतौ ॥ देव मानव राग गव जी करोति परो मुली ॥ देव० ॥२॥ देव पासय थागतादिक ब.मा सुमोदितः । रेवकार विवादिभिर्मधु गगमा हिमि गकुला । देवरू पित वाग मामृत सेकतोपि विधा जना ॥ देव० ॥३॥ सेवके तरु नामधीय निधीते यदि ता सदा । देवमेव विदेहि मे भवतो तो रुपमात ।। सेवया तव पादयो रुद पधितानशिवेपि सा ॥ देर० ॥ ४॥