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मदरास व मैसूर प्रान्त |
[ ९ कारीगरी है । मंदिरके उत्तर कमरे में एक बड़ी जैनमूर्ति नेमिनाथस्वामीकी विराजित है जो मदरासके मैलापुर जैन मंदिर से लाई गई। है। यहां ताड़पत्रों ग्रन्थोंका संग्रह है इनमेंसे १७ ग्रन्थों का हाल Dr: Oppert's List of Sanskrit Manuscript in south India P. 29 में दिया है । इनमें एक ग्रंथ सन् ७५० का हुआ व दूसरा सन् १२०० का लिखा हुआ है। मैकंजी साहब के एक लेखमें विक्रम चोलका लेख है जो नोल राजा सन् १९१८ से
११३५ तक राज्य करता था । इसने यहां के जैन मंदिरको भूमि दान की थी। हमने इस ग्रामका दर्शन सी० एस० मल्लिनाथजीके साथ ता० १८ मार्च १९२६ को किया था । भट्टारक लक्ष्मीसेनजी मिले थे। इनकी आयु १६ वर्षकी है। धर्मरोचक हैं। यहां जैनियोंके ६० घर हैं । मठ बहुत सुन्दर बना है । एक हाते ये दो मंदिर हैं उनमें प्रतिमाएं प्राचीन हैं व खंभोंमें अच्छी कारीगरी हैं । एक स्थानपर चरणनि बहुत से हैं व गौतम गणधरकी पाषाणकी मूर्ति बैठे आसन पीली कमण्डल सहित है | नवग्रहकी मूर्तियां भी हैं। एक नया मंदिर बहुत सुन्दर तयार होरहा है । यहां बहुत से लेख ग्रंथ भाषामें हैं ।
(६) डीनम् - यहां एक बागमें एक जैनमूर्ति बेटे आसन तीन छत्र व चमर सहित है जो जिंजीसे लाई गई है ।
(७) टोंडर - निजीसे ८ मील | इस ग्रामके दक्षिण १ मील एक पहाड़ी है जिसको पंच पांडव मलई कहते हैं । यहां दो 1 गुफाएं हैं इनका परस्पर सम्बंध है । इनके पास गुफाकी भीत पर एक जैन मूर्ति २ फुट ऊंची सर्प फण सहित खुदी है । ग्रामके
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