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मदरास व मैसूर प्रान्त |
[ ८९ यात्रीके बंगले से होकर पोन्नइयारकी ओर जाती है। यहां एक मंदिर ८वीं शताब्दीका है जिसमें चोल राजाओंके लेख है । एक लेखमें एक पांड्य राजा द्वारा भूमिदानका वर्णन है ।
(२) किलरुंगुनम् - ता० कुड्डलोर । तिरुवेंदीपुरम्से पश्चिम ४ मील | यहांसे वनरुतीको जानेवाली सड़कपर । कुड्डुलोर और
कुप्पमको जानेवाली सड़कोंके मेलपर किलकुप्पम् ग्रामके पास ग्रामकी देवी मंदिरकी भीतके सहारे एक जैनमृति खड़ी हुई है यह बैठे आसन छत्र सहित है, नग्न है, भूमिमेंसे निकली है ।
(३) तिम्वादी - कुड्डालोर से पश्चिम १४ मील पनरुतीकी सरकपर | इस स्थानका प्राचीन इतिहास है। आठवीं शताब्दी तक पलों और गंगवों के समयमें यह मुख्य नगर था जिसके शासक सब जनी थे । तामिल साहित्य में इनका वर्णन है कि इनकी उपाधि आदि गैनम् थी । इनका शासन सालेम जिले में धर्मपुरी तथा कम्बा नेल्ल्टर तक था । (Epi. Indi Vol. 331 ) ग्रामके खेतोंने दो बड़ी जैन मूर्तियां पाई गई हैं । दोनों नग्न हैं । एक ४ || फुट ऊंची बेटे आसन है जो शिवमंदिरके हातेमें विराजमान है। दूसरी ३ || फुट ऊंची बेटे आसन है वह तिरुवेंदीपुर मके कोन्नरप्प नायक कन्वेनई में विराजमान की गई है। इस एपिग्रैफिका जिल्द ६के देखने से पता लगता है कि इस स्थानका सम्बंध उस शिलालेख नं० ७५ से है जो उत्तर अर्काटके पोल्लर तालुकामें तिरुमलई पर्वत पर है । इस लेखमें तीन राजाओंके नाम आए हैं(१) एलिनीयायवनिका, (२) राजराजपावगन, (३) व्यामुक्तश्रवणोज्वल या विदुगदल गिय पेरूमल । एलिन कोचीन राज्य में केरलके