________________
८८] माचीन जैन स्मारक। मतपर आरुढ़ किया । जो जैन थे और जनेऊ पहनते थे उन्होंने जनेऊ निकाल दिया था, मस्तक पर भम्म लगाते थे और अपनेको निरपुसी वल्लाल अर्थात पवित्र भस्म लगानेवाले कहते थे वे जैनी होगए । अभीतक उनका यह नाम चला जाता है । वीरसेनाचार्यने जैनधर्मका प्रभाव फैला दिया। इनका समाधिमरण वेलूरमें हुआ। ये मुनि महाराज श्रवणबेलगोलासे
श्री पार्श्वनाथजीकी धातुकी मूर्ति लाए थे सो वेलूरके मंदिरमें विराजमान है । इस गंगप्पा ओडयरकी संतान अभीतक तायनूरमें वास करती हैं क्योंकि इस वंशने जैनधर्मकी अपूर्व सेवा की थी इसलिये जब दावत होती है तब सबसे पहले इस वंशवालोंको पान दिया जाता है तथा टिंडीवनम् तालकाके सीतामूरमं जब भट्टारक महारानका चुनाव होता है तब इस वंशवालोंकी मम्मति मुख्य समझी जाती है । टिंडीवनम् तालुका जैन लोग अब भी उच्च पदमें हैं। उनमें धनिक व्यापारी व बहुत बुद्धिमान कृषक है। इनकी उपाधि नेनार और ओडइयर है परन्तु उनके सम्बन्धवाले जो जैनी कुम्भकोनम् व अन्यत्र हैं वे अपनेको चेट्टी या मुडैलियर कहते हैं। दक्षिण अर्काटके सब जैन दिगम्बर जैन है-ऐसे ही मदरासके दक्षिण सव जैनी दि जैन हैं। ये परस्पर स्वतंत्रतामे संबंध करते हैं।
यहांके मुख्य स्थान । (?) कुजलोर-तिरुपायुलियरका नया नाम । अब यहां कोई विशेष महत्त्व जैनियोंका नहीं है परन्तु प्राचीन कालमें यह स्थान जैनधर्मका केन्द्र था । एक खंडित जैन तीर्थकरकी पाषाण मूर्ति चार फुट ऊंची उस सड़कके पश्चिम खड़ी है जो मौना कुप्पममें