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तो मूल भावना के रूप में स्वीकार किया ही है । हमें इस संदर्भ में प्रादि तीर्यकर ऋषसदेव को प्रथम रहस्यवादी व्यक्तित्व स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं होगा। उनकी ही परम्परा का प्रवर्तन करने वाले नेमिनाथ, पार्श्वनाथ मोर महावीर जैसे ऐतिहासिक महापुरुषों का नाम भी अग्रमण्य है । इसी रहस्य साधना को जनसामान्य तक पहुंचाने का प्रयत्न करने वालों में प्राचार्य कुद-कुद, कार्तिकेय, पुज्यपाद, योगेन्दु. मुनि रामसिंह, बनारसीदास, मानन्दघन आदि जैसे साधकों का नाम किसी भी तरह भुलाया नहीं जा सकता । उनके ग्रन्थों में प्राध्यात्मिक तत्त्व को रहस्य से जोड़ दिया गया है जहाँ गैन रहस्य साधना का स्पष्ट विश्लेषण दिखाई देता है । जैन साधक 'टोडरमल की रहस्यपूर्ण चिट्ठी' इसी अर्थ को व्यक्त करती है । इस चिट्ठी में उन्होंने अपने कतिपय मित्रों को आध्यात्मिकता का संदेश दिया है। इसी तरह पाइअलच्छिनाममाला, सुपासणाहचरिउ (318) तथा हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण (2.204) मादि ग्रन्थों में भी रहस्य शब्द को गुह्य अथवा प्राध्यात्म की परिधि में मंढ़ दिया है । प्रतएवं इस प्राधार पर यह कहना अनुपयुक्त नहीं होगा कि जन साधकों ने भी 'रहस्य' के दर्शन को अध्यात्म से अङ्गता नहीं रखा । उन्होंने तो वस्तुतः यथासमय रहस्य शब्द का प्रयोग 'पाध्यात्म के अर्थ में ही किया है। आध्यात्म का अर्थ है-प्रात्मा को अर्थात् स्वयं को अधिश्रित करके वर्तमान होना (मात्मानमधिश्रिन्य वर्तमानोऽध्यात्मम्--अषसहस्री, कारिका 2.)। इसमें पात्मा को केन्द्रितकर परमात्मपद की प्राप्ति के लिए प्रयत्न किया जाता है। प्राचीन प्रर्धमागधी जैनागमो में भी इस शब्द का प्रयोग हुआ है।
इस रहस्य तत्व की भावानुभूति वासना रूप भाव के माध्यम से भावक के मानस-पटल पर अकित होती है । इसी को साक्षात्कार कहा जाता है । यह साक्षाकार तभी हो पाता है, जब मिथ्यात्व या प्रज्ञान का मावरण साधक की प्रात्मा से हट जाये । तब इसको रहस्यानुभूति कहा जायेगा । भावानुभूति काव्यात्मक है मौर रहस्यानुभूति साधनात्मक या दार्शनिक है । एक का सम्बन्ध रस से है और दूसरे की परिधि माध्यात्मिक है । प्रथम प्रक्रिया विचार से प्रारम्भ होती है और भावना से होती हुई अनुभूति मे विराम लेती है । द्वितीय प्रक्रिया अनुभूति से अपनी यात्रा प्रारम्भ करती है और भावना से होती हुई विचार में गभित हो जाती है । प्रथम को विषय प्रधान (Objective) कहा जा सकता है और द्वितीय को प्रात्मप्रधान या भावात्मक (Subjective) माना जा सकता है।
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सूय, 1.4.18; भगवती, 2.24, 37.38; 9. 137; 15.56, 157%3; 18. 40; नाया. 1.1. 16, 44; 1. 5.90; 1. 7.6. 42; 1.8. 139%B 1.14.70; उवासक, 1.13. 57.59%; पण्हा, 6.2; देखिए, भागम शब्दकोय, पु. 609