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से बाहर कर देते हैं । इधर मोह के शासनकाल में पाप वासनामों का व्यापार प्रारंभ हो जाता है । मोह की दासी दुर्गति से काम, राग, पौर देष ये तीन पुत्र तथा हिंसा, घणा मोर निद्रा ये तीन पुत्रियां होती हैं। विवेक सन्मति से विवाह करता
सम्यक्स्व के खड्ग से मिथ्यात्व को समाप्त करता है । परमहंस प्रात्मशक्ति को जाग्रत कर स्वात्मोपनधि को प्राप्त करता है। इसी तरह ब्रह्मवूपराब, बनारसीवास मादि के काव्य भी इसी प्रकार भावाभिव्यक्ति से मोतप्रोत हैं।
फागु साहित्य में नेमिनाथ फागु (भट्टारक रत्नकीति) यहाँ उल्लेखनीय है कवि ने राजुल की सुन्दरता का वर्णन किया है
चन्द्रवदनी मृगलोचनी, मोचनी खंजन मीन । वासग नीत्पो वेरिणई, मेरिणय मधुकर दीन । युगल गल दाये शशि, उपमा नासा कीट । अधर विद्रुम सम उपमा, दंत नू निर्मल नीर ।। चिदुक कमल पर षट्पद, मानन्द कर सुधापान ।
ग्रीवा सुन्दर सोमती कम्बु कपोलने बान ।। कुछ फागुमो में अध्यात्म का वर्णन किया गया है। इस दृष्टि से बनारसीदास का मध्यातम फाग उल्लेखनीय है जिसमें कवि ने फाग के सभी अंग-प्रत्यंगों का सम्बन्ध प्रध्यात्म से जोड दिया है
भवपरपति चाचरित भई हो, मष्टकर्म बन जाल । अलख अमूरति मातमा हो, खेलं धर्म धमाल । नयपंकति चारि मिलि हो, ज्ञान ध्यान उफताल।
पिचकारी पद साधना हो संवर भाव गुलाल ॥' ऐतिहासिक वेलियो के साथ ही प्राध्यात्मिक वेलियां भी मिलती है। इन प्राध्यात्मिक वेलियो में 'पंचेन्द्रिय वेलि' विशेष उल्लेखनीय है जिसमे कवि ठाकरसी मे पंचेन्द्रिय-विषय वासना के फल को स्पष्ट किया है। स्पर्शन्द्रिय में प्रासक्ति का परिणाम है कि हापी लौह शृंखलामो से बंध जाता है और कीचक, रावण प्रादि दारुण दुःख पाते हैं।
वन तरुवर फल सउँ फिरि, पय पीवत ह स्वचंद । परसण इन्द्री प्रेरियो, बहु दुख सहे गयन्द ।।
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1. परमहंस रास, खंडेलवाल दि० जैन मन्दिर, उदयपुर में सुरक्षित है। 2. हिन्दी बन भक्ति काव्य पोर कषि, पृ. 109 3. बनारसी विलास, अध्यातम काग, 10-11, पृ. 155