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वर्तन की घोर देखने लगा । इस युग में भक्ति का प्राधान्य रहा। सभी धर्मों में भक्ति के कारण अनेक विकास पथ निर्मित हुए । बाह्याडम्बर के साथ ही प्रचार शैथिल्य बढ़ गया। तात्कालिक साहित्य, धर्म और भक्ति की प्रेरणा से अधिक समृद्ध हुआ । वैदिक, जैन भोर बौद्ध धर्मों के विकास और परिवर्तन के विविध स्वरूप विशेष रूप से लक्षित होते हैं । इसे हम संक्षेप में निम्न प्रकार से देख सकते हैं ।
1. वैदिक धर्म
मध्ययुग में वैदिक धर्म ने विशेष रूप से दार्शनिक क्षेत्र में प्रवेश किया । प्रभाकर और कुमारिल ने मीमांसा के माध्यम से और शंकराचार्य ने वेदान्त के माध्यम से वैदिक दर्शन का पुनरुत्थान किया । शंकराचार्य ने तो बोद्ध धर्म की बहुतसी सामग्री लेकर उसे आत्मसात करने का प्रयत्न किया । इसलिए उन्हें "प्रच्छन्न बौद्ध भी कहा जाता है । इसी युग में पौराणिक और स्मार्त धर्मों का समन्वयात्मक रूप सामने भाया । स्मार्तो ने विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य श्रीर गणेश इन पंचदेवों की पूजा प्रारंभ कर दी । इन्ही के आधार पर पाच उपनिषद् भी लिखे गये । यह उपनिषद् दर्शन, स्मार्त और वेदान्त दर्शन से एक जुट हो गया । वैष्णव धर्मावलम्बी कवियो ने ऐसे ही धर्म को स्वीकार किया है। भागवत और पांचरात्र सम्प्रदाय भी वैष्णव धर्म के श्रग रहे है । भागवत सम्प्रदाय ने शिव और विष्णु में अभिन्नत्व स्थापित किया । वैदिक पूजा-पद्धति से वे विशेष प्रभावित थे । वैष्णव धर्म भोर साहित्य के देखने से यह स्पष्ट है कि उनमें शाक्त सिद्धान्तों का समावेश हुआ ।
पांचरात्र सम्प्रदाय भी अनेक उपसम्प्रदायों में विभक्त हो गया । वैष्णव, महानुभाव और रामायत उनमे प्रमुख उपसम्प्रदाय थे। वैष्णव पांचरात्र सम्प्रदाय उत्तर से दक्षिण तक फैला था । तमिल प्रदेश में उसका विशेष प्रचार था । उसमें नाथमुनि, पुण्डरीकाक्ष, यमुनाचार्य, रामानुज रामानन्द, तुलसीदास भादि प्रसिद्ध प्राचार्य और सन्त हुए है। रामानुज का विशिष्टाद्वैतवाद विशेष प्रसिद्ध रहा है ।
महानुभाव सम्प्रदाय मात्र कृष्ण का आराधक था और वह मूर्ति के स्थान पर केवल प्रतीक की पूजा करता था। यह सम्प्रदाय स्मार्त के आधार का विरोधी तथा साम्प्रदायिक था । दत्तात्रय इसके प्रस्थापक प्राचार्य माने जाते हैं। महाराष्ट्र और कन्नड प्रदेशों में इसका विशेष प्रचार था । रामायत सम्प्रदाय में राम की कथा को आध्यात्मिक मोड़ मिला । तदनुसार राम माया मनुष्य और सीता मायाच्छादित चिन्छक्ति थी । इस पर अद्वैत वेदान्त भोर शाक्त सम्प्रदायों का प्रभाव था । यह सम्प्रदाय दक्षिण से लेकर उत्तर भारत में लोकप्रिय हुआ ।
पं. बलदेव उपाध्याय ने वैष्णव भक्ति मान्दोलन को तीन भागों में विभाजित किया है- (i) सात्वतयुग ( 1500 ई. पू. से 500 ई. तक ), (ii) भलवार