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________________ 284 मछली के समान तड़फी हैं । माध्यामिक विवाह रचाकर भी वियोग की सर्जना हुई है। ब्रह्म मिलन के लिए निर्गुणी सन्तों और जैन कवियों ने खूब रंगरेलियां भी खेली हैं। इस प्रकार निर्गुणियां सन्तों और मध्यकालीन हिन्दी जैन कवियों ने थोड़ी बहुत मसमानताभों के साथ-साथ समान रूप से गुरु की प्रेरणा पाकर ब्रह्म का साक्षात्कार किया है । इसके लिए उन्होंने भक्ति अथवा प्रपत्ति की सारी विधानों का माश्रय लिया है । जैन साधकों ने अपने इष्ट देव की वीतरागता को जानते हए भी अनावशत् उनकी साधना की है। 7. सगुण रहस्यमावना मोर जैन रहस्यभावना जैसा हम पीछे देख चुके हैं, सगुण भक्तों ने भी ब्रह्म को प्रियतम मानकर उसकी साधना की है । जैन भक्तों ने भी सकल परमात्मा का वर्णन किया है जो सगुण ब्रह्म का समानार्थक कहा जा सकता है । मीरा में सूर पोर तुलसी की अपेक्षा रहस्यानुभूति अधिक मिलती है । इसका कारण है कि सूर और तुलसी का साध्य प्रत्यक्ष और साकार रहा। मीरा का भी, परन्तु सगुण भक्तों में कान्ताभाव मीरा में ही देखा जाता है इसलिए प्रेम की दिवानी मीरा में जो मादकता है वह न तो सूर में है और न तुलसी में और न जैन कवियों में। यह अवश्य है कि जैन कवियों ने अपने परमात्मा की निर्गुण और सगुण दोनों रूपों की विरह वेदना को सहा है । एक यह बात भी है कि मध्यकालीन जनेतर कवियों के समान हिन्दी जैन कवियों के बीच निर्गुण अथवा सगुण भक्ति शाखा की सीमा रेखा नहीं खिची। वे दोनों प्रवस्थानों के पुजारी रहे हैं क्योंकि ये दोनों अवस्थायें एक ही मात्मा की मानी गई हैं। उन्हें ही जैन पारिभाषिक शब्दों में सिद्ध और महन्त कहा गया है। मीरा की तन्मयता और एकाकारता बनारसीदास और मानन्दघन में अच्छी तरह से देखी जाती है । रहस्य साधना के बाधक तत्वों में माया, मोह मादि को भी दोनों परम्परामों ने समान रूप से स्वीकार किया है । साधक तत्वों में इन भक्तों से भक्ति तत्त्व की प्रधानता अधिक रही है। भक्ति के द्वारा ही उन्होंने अपने माराध्य को प्रत्यक्ष करने का प्रयत्न किया है । यही उनकी मुक्ति का साधन रहा है। साधन का पथ सुगम बनाने और सुलाने के सन्दर्भ में जैन एवं जैनेतर सभी सन्तों और भक्तों ने गुरु की महिमा का गान किया है । मीरा के हृदय में कृष्ण प्रेम की चिनगारी बचपन से ही विद्यमान थी। उसको प्रज्वलित करने का श्रेय उनके भावुक गुरु रेदास को है जो एक भावुक भक्त एवं सन्त थे। मीरा के गुरु रैदास होने में कुछ समालोचक सन्देह व्यक्त करते हैं । जो भी हो, मीरा के कुछ पदों में जोगी का उल्लेख मिलता है जिसने मीरा के हृदय में प्रेम की चिनगारी बोई।। 1. जोगिया कहां गया नेहड़ी लगाय । छोड़ गया बिसवास संघाती प्रेम की बाती बराय। मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन रहो म जाई। मीरा की प्रेम सापना, पृ. 168,
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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