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afrat पुरुष से विवाह करने के बाद कबीर का पीतम बहुत दिनों में घर प्राता है- "बहुत दिनन में प्रीतम प्राए ।" कवि की प्रिया उसे प्रभात मानती है । बाद में तादात्म्य की सही अनुभूति मधुर मिलन और सुहागरात में होती है । वहीं कबीर की प्रिया प्रनिर्वचनीय प्रानन्द का अनुभव करती है
विगत प्रकल अनुपम देखा, कहता कही न जाई । सेन करं मन ही मन रहसं, गूंगे जानि मिठाई ॥
इस अवस्था में areक और साध्य जल में जल के समान मिलकर प्रस हो जाते हैं
जल में कुम्भ कुम्भ में जल है, भीतर बाहर पानी ।
फूटा कुम्भ जल जलहि समाना, यह तत कह्यो गियानी ॥
प्रत स्थिति में प्रिया और प्रियतम के बीच यह भावना प्रस्थापित हो जाती है-हरि मरि हैं तो हमहु मरि हैं ।
हरि न मरें तो हम काहे को मरें ॥
इस प्रकार निर्गुरिया सन्त प्राध्यात्मिकता, अद्व ेत और पवित्रता की सीमा में घिरे रहते हैं । उनकी साधना में विचार प्रौर प्रेम का सुन्दर समन्वय हुप्रा है तथा ब्रह्मजिज्ञासा से वह अनुप्राणित है । अण्डरहिल के अनुसार रहस्यवादियों का निर्गुण उपास्य प्रेम करने योग्य, प्राप्त करने योग्य सजीव और वैयक्तिक होता है । ये विशेषतायें सन्तों के रहस्यवादी प्रियतम में संनिविष्ट मिलती हैं । प्रेम, गुरु, विरह, रामरस ये रहस्यवाद के प्रमुख तत्व हैं । अण्डरहिल के अनुसार प्रेम मूलक रहस्यवाद की पांच प्रवस्थायें होती हैं— जागरण, परिष्करण, प्रशानुभूति, विघ्न और मिलन । सन्तों के रहस्यवाद में ये सभी प्रवस्थायें उपलब्ध होती हैं। उनकी रहस्यभावना की प्रमुख विशेषतायें हैं- सर्वव्यापकता, सम्पूर्ण सत्य की धनुभूति प्रवृत्यात्मकता, कथनी-करनी में एकता, कर्म-भक्ति-प्रेम-ज्ञान में समन्वयवादिता, म तानुभूति और जन्मान्तरवादिता | 2
4. सगुण भक्तों की रहस्यभावना :
सगुण साधकों में मीरा, सूर मौर तुलसी का नाम विशेष उल्लेखनीय है । मीरा का प्रेम नारी सुलभ समर्पण की कोमल भावना गर्भित 'माधुर्य भाव' का है
1.
ब्राज परभात मिले हरि लाल । दादूवानी
2. हिन्दी की निर्गुण काव्य धारा और उसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि, पु. 580-604.