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________________ 266 तादात्म्य होने पर साधक को प्राराध्य के अतिरिक्त और कोई नहीं दिखाई देता । रतनसेन को पद्मावती के अतिरिक्त सुन्दरी मप्सरा मादि का रूप नहीं दिखाई दिया । उसी के स्मरण में उसे . परमानन्द की अनुभूति होती है। धीरेधीरे प्रदेत स्थिति पाती है और दोनों एक दूसरे में ऐसे रम जाते हैं कि उन्हें सारा विश्व प्रकाशित दिखाई देने लगता है । वे ससीमता से हटकर असीमता में पहुंच जाते हैं, रतनसेन और पद्मावती इस प्रकार से एक हुए जैसे दो वस्तुएं मौंट कर एक हो जाती हैं। सूफी कवियों में मिलन की पांच प्रवस्थानों का वर्णन मिलता है-फना, फक्द, सुक्र, वज्द और शह । फना में साधक साध्य के व्यक्तित्व के साथ बिलकुल धुल-मिल जाता है । वह अपने महं के अस्तित्व को भूल जाता है। फक्द अवस्था में वह उसके नाम पोर रूप में रम जाता है । सुक्र अवस्था में साधक साध्य के रूप का पानकर उन्मत्त हो जाता है, मानन्द विभोर हो जाता है । वज्द अवस्था में साधक को परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है और शह में उसे पूर्ण शान्ति मिल जाती है। जायसी में पांचों अवस्थायें उपलब्ध होती हैं। जायसी ने परमतत्त्व का साक्षात्कार करने के लिए प्रकृति को भी एक साधन बनाया है । सृष्टि का मूल तत्त्व अद्वैत था । अविद्या आदि कारणो से उसमें द्वैत तत्त्व माया जो भ्रान्ति मूलक था। भ्रान्ति के दूर होते ही साधक स्वयं में और साध्य में तादात्म्य स्थापित कर लेता है। इस सन्दर्भ मे रहस्यवादी कवि का प्रकृति वर्णन शुद्ध भौतिक न होकर काल्पनिक, दिव्य और रहस्यवादी होता है । कभी-कभी अपनी प्रणय भावना को भी वह प्रकृति के माध्यम से व्यंजित करता है। रहस्यवाद की अभिव्यक्ति विविध प्रकार की संकेतात्मक, प्रतीकात्मक, जनापरक एवं मालंकारिक शैलियों में की जाती है। इन शैलियों में प्रन्योक्ति शैली, समासोक्तिशैली, संवृत्ति बक्रतामूलक शैली, रूपक शैली, प्रतीकशैली विशेष महत्वपूर्ण है । इन शैलियों मे जायसी ने अपने प्राध्यात्मिक सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है। इसे उनका माध्यात्मिक रहस्यवाद कह सकते हैं।' 1. वही, पार्वती महेश खण्ड, पृ. 91. 2. वही, गन्धर्वसेन-मंत्री खण्उ. पृ. 104. 3. वही, रतनसेन-सूलीखण्ड, पृ. 111. 4. वही, वसन्तखण्ड, पृ. 84. 5. वही, रतनसेन खण्ड, पृ. 143. 6. जायसी का पद्मावत काव्य और दर्शन, पृ. 286-288. 7. जायसी का पद्मावत : काम और दर्शन, पृ. 305-308.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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