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पिय ब्रह्मा में सरस्वति नाम । पिय माधव भो कमला नाम ॥ for शंकर मैं afr भवानि । पिय जिनवर में केबलवानि ॥ सुन्दरदास ने प्रात्म-परमात्म तत्त्व की अद्वैतता, अखण्डता तथा निर्मुखता का वर्णन इस प्रकार किया है
ब्रह्म निरीह निरामय निर्गुन नित्य निरंजन धीर न भासे ।। ब्रह्म प्रखण्डित है प्रध करष बाहिर भीतर ब्रह्म प्रकासं । ब्रह्महि सूच्छम स्थूल जहां लगि ब्रह्महि साहिब ब्रह्महि दासं । सुंदर और कछू मत जानहू ब्रह्महि देखत ब्रह्म तमासे । 2
तुलसीदास ने राम के स्वरूप का वर्णन करते हुए उन्हें सगुण-निर्गुण रूप माना है। उन्होंने ब्रह्म को नित्य, निर्भय, सच्चिदानन्द, ज्ञानधन, विमल, व्यापक, सिद्ध प्रादि विशेषणों से प्रभिहित किया है
नित्य निर्भय, नित्य मुक्त निर्मान हरि ज्ञानधन सच्चिदानंद मूलं । सर्वरक्षक सर्वभक्षकाध्यक्ष कूटस्थ गूढ़ाचि भक्तानुकूलं ॥1
सिद्धि साधक साध्य, वाच्य वाचक रूप मंत्र जापक-जाप्य, सृष्टि सष्टा । परमकारन कंजनाभ, सगुन, निर्गुना सकल- दृश्य दृष्टा ॥
व्योम व्यापक बिरज ब्रह्म बरदेस बँकुठ वामन विमल ब्रह्मचारी । सिद्ध वृन्दास्कावृंद वंदित सदा खंडि पाखंड निर्मूलकारी ॥
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पूरनानंद संदोह प्रहरन संमोह प्रज्ञान गुनसन्निपातं ।
बचन मन कर्म गत सरन तुलसीदास, त्रास पाथोधि इव कुंभजानं ॥ ३
सूर को सगुरपवादी कहा जाता है पर उन्होंने निर्गुण रूप का भी भक्ति - वशात् व्याख्यान किया है
शोभा श्रमित अपार प्रखिण्डत प्राप प्रातमाराम । पूरन ब्रह्म प्रकट पुरुषोत्तम सब विधि पूरन काम । श्रादि सनातन एक अनुपम प्रविगत अल्प महार । प्रकार श्रादि वेद प्रसुर हन निर्गुण सगुण अपार ॥14
सूरसागर के प्रथम स्कन्ध के प्रारम्भ में सूरदास ने परब्रह्म के रूप की विस्तृत
बनारसीविलास, प्रध्यातम गीत, पृ.
1.
2. सुन्दर विलास, पृ. 129. विनयपत्रिका, 53.
3.
4. सूरसारावली, पद 993, पृ. 34 ( वेंकटेश्वर प्रेस)
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