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वर्तमान में प्रोफेसर एवं निवेशक, जैन सुशीलन केन्द्र, राजस्थान विश्वविद्यालय की भी चिरी हूं जिनसे जैन धर्म और दर्शन को समझने में सुविधा हुई है।
प्रस्तुत अध्ययन में जिन लेखक और विद्वानों का प्रत्यक्ष-मंत्रत्यक्ष रूप से सहयोग मिला, उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ । विशेष रूप से सर्व श्री डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, भागरचंद नाहटा परमानन्द शास्त्री, डॉ. कस्तुरचंद कास लीबाल, डॉ. प्रेमसागर, डॉ. वासुदेव सिंह, डॉ गोविन्द त्रिगुणायन, डॉ. रामनारायण पांडे, डॉ नरेन्द्र भानावत प्रभूति के प्रति प्राभार व्यक्त करना चाहती हूं जिनके श्रम और शोध विगरण ने हमारे काम को कुछ हल्का कर दिया ।
प्रस्तुत शोध प्रबन्ध सन् 1975 में नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा पी. एच. डी. की उपाधि के लिए स्वीकृत हुआ था । लगभग आठ वर्षों बाद अब यह प्रकाश में भा रहा है। श्री दिगम्बर जैन महासभा तथा सन्मति विद्यापीठ के अध्यक्ष और निदेशक की भी मैं ऋणी हूँ जिन्होंने इसको प्रकाशित कर साहित्य सेवा की। इस प्रसंग में विद्वान पाठकों से क्षमा भी मांगना चाहूगी जिन्हें मुद्रण की अशुद्धियां पायस मे केकरण का अनुभव दे रही हैं । तुलसा भवन
श्री मती पुष्पलता जैन
न्यू एक्सटेंशन एरिया, सदर, नागपुर - 440001 fa. 16-4-84
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