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एक अन्यत्र पद में सूरदास संसार और संसार की माया को मिया मानते हैं
'मिथ्या यह संसार और मिय्या यह माया
मिथ्या है यह देह कही क्यों हरि बिसराया ॥' जैन कवि बनारसीदास जन्म गंवाने के कारणों को भी गिना देते हैं । उनके भावों में जो गहराई और अनुभूति झलकती है वह सूर के उक्त पय में नहीं दिखाई देती है
वा दिन को कर सोच जिये मन में ॥ बनज किया व्यापारी तूने, टांडा लादा भारी रे। मोछी पूजी जूमा खेला, माखिर बाजी हारी रे ॥.... झूठे नैना उलफत बांधी, किसका सोना किसकी चांदी॥ इक दिन पवन चलेगी मांधी किसकी बीबी किसकी बांदी॥
नाहक चित्त लगावै धन में । 2. शरीर से ममत्व
साधकों ने शरीर की विनश्वरता पर भी विचार किया है। बाल्यावस्था पोर युवावस्था यों ही निकल जाती है। युवावस्था में वह विषय वासना की मोर दौड़ता है और जब वृद्धावस्था मा जाती है तब वह पश्चात्ताप करता है कि क्यों वह अध्यात्म की मोर से विमुख रहा । कबीर ने वृद्धावस्था का चित्रण करते हुए बड़े मामिक शब्दों में कहा है
तरुनापन गइ बीत बुढ़ापा आनि तुलाने । कांपन लागे सीस चलत दोउ चरन पिराने । नैन नासिका चूवन लागे मुखतें प्रावत वास ।
कफ पित कठे घेरि लियो है छूटि गई घर की प्रास ॥ सूर ने भी इन्द्रियों की बढ़ती हुई कमजोरी का इसी प्रकार वर्णन किया है
बालापन खेलत खोयो, जुमा विषय रस माते । वृद्ध भये सुधि प्रगटी, मो को, दुखित पुकारत तातें। सुतन तज्यो त्रिय भ्रात तज्यो सब, तनतें तुचा भई न्यारी। श्रवन न सुनत चरन गति थाकी, नैन बहे जलधारी। पलित केस कण्ठ कण्ठ भब रुध्यो कल न परं दिन राती ॥
1. सूरसागर, 1110. 2. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 55. 3. संत वाणी संग्रह, भाग 2, पृ. 21. 4. संत वाणी संग्रह, भाग 2, पृ. 64,