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________________ 205 प्रतीक्षा थी, सौभाग्य से वह समय आ गया, प्रिय के विरह का अन्त हो गया अब उसके साथ फाग खेलना है। कवि ने यहां श्रद्धा को गगरी बनाया उसमें रुचि का केशर घोला, मानन्द का जल डाला और फिर उमंग भर प्रिय पर पिचकारी छोड़ी कवि मत्यन्त प्रसन्न है कि उसकी कुमति रूप सौत का वियोग हो गया । वह चाहता है कि इसी प्रकार सुमति बनी रहे ____ 'होरी खेलूगी घर पाए चिदानन्द ।। गिरा मिथ्यात गई प्रब, माई काल की लविध वसंत होरी।। पीय संग खेलनि कों, हय सइये तरसी काल अनन्त ।। भाग जग्यो मब माग रचानी, पायो विरह को अंत ॥ सरधा गागरि में रुचि रूपी केसर घोरी तुरन्त ॥ प्रानन्द नीर उमंग पिचकारी, छोडूगी नीकी भंत ॥ आज वियोग कुमति सोननिकों, मेरे हरष अनन्त ॥ भूघर धनि एही दिन दुर्लभ सुमति राखी विहसंत ॥1 नवलराम ने भी एसी ही होली खेलने का प्राग्रह किया है। उन्होंने निज परणति रूप सुहागनि भीर सुमतिरूप किशोरी के साथ यह खेल खेलने के लिए कहा है । ज्ञान का जल भरकर पिचकारी छोडी, क्रोध मान का अबीर उड़ाया, राग गुलाल की झोरी ली, संतोष पूर्वक शुम भावों का चन्दन लिया, समता की केसर घोरी प्रात्मा की चर्चा की, 'मगनता' का त्यागकर करुणा का पान खाया और पवित्र मन से निर्मल रंग बनाकर कर्म मल को नष्ट किया । एक अन्यत्र होली में वे पुनः कहते हैं-"पैसे खेल होरी को खेलिरे' जिसमें कुमति ठगोरी को त्यागकर सुमति-गोरी के साथ होली खेल ।" प्रागे नवलराम यह भाव दर्शाते हैं कि उन्होंने इसी प्रकार होली खेली जिससे उन्हें शिव पेठी का मार्ग मिल गया। जैसे खेल होरी को खेलिरे ।। कुमति ठगोरी की प्रब तजि करि, तु साथ सुमति गोरी को ॥ नवल हसी विधि खेलत है, ते पावत हैं मग शिव पोरी को ।। 1. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 158. 2. इह विधि खेलिये होरी हो चतुर नर ॥ निज परनति संगि लैह सुहागिन, अरू फुनि सुमति किशोरी हो ॥1॥ ग्यान मइ जल सौ भरि भरि के, सबद पिचरिका छोरी क्रोध मान प्रबीर उड़ावो राग गुलाल की झोरी ही ।।3। हिन्द पद संग्रह, पृ. 177 3. वही, पृ. 176.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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