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अनुभव पानि सुपारी घरचानि, सरस रंग लगाय रे तेरे,।
राम कहै जै'इह विधि पेले, मोक्ष महल में जाप रे ॥
धानतराय ने होली का सरस चित्रण प्रस्तुत किया है। वे-सहज, बसन्तकान में होली खेलने का माहवान करते हैं। दो दल एक दूसरे के सामने खड़े हैं। एक दल में बुद्धि, दया, भमा रूप नारी वर्ग खड़ा हुमा है और दूसरे दल में रलत्रयादि गुणों से सजा प्रात्मा रूप पुरुष वर्ग है। ज्ञान, ध्यान, रूप, डफ, ताल मादि वाघ बजते हैं, घनघोर अनहद नाद होता है, धर्म रूपी लाल वर्ण का गुलाल उड़ता है, समता का रंग घोर लिया जाता है, प्रश्नोत्तर की तरह पिचकारियाँ चलती है। एक मोर से प्रश्न होता है-तुम किसकी नारी हो, तो दूसरी ओर से प्रश्न होता है, तुम किसके लड़के हो? बाद में होली के रूप में प्रष्ट कर्म रूप ईधन को अनुभव रूप अग्नि में जला देते है और फलतः चारों ओर शान्ति हो जाती है इसी शिवानन्द को प्राप्त करने के लिए कवि ने प्रेरित किया है।
जिस समय सारा नगर होली के खेल में मस्त है, सुमति अपने पति चेतन के प्रभाव में खेद खिन्न है। उसे इस बात का अन्यन्त दुःख है कि उसका पति अपनी सौत कुमति के साथ होली खेल रहा है । इसलिए सोचती है 'पिमा विन कासों खेलों होरी' (धानत पद संग्रह, पद (93)। संयोग वश चेतनराय घर वापिस माते हैं और सुमति तल्लीन होकर उनके साय होली खेलती है-भली भई यह होरी माई माये चेतनगय (वही,फ्द 193)।
इसी प्रकार वे चेतन से समता रूप प्राणप्रिया के साथ 'छिमा वसन्त' में होली खेलने का प्राग्रह करते है। प्रेम के पानी में करुणा की केसर घोलकर ज्ञान
1. महावीरजी अतिशय क्षेत्र का एक प्राचीन गुटका, साइज 8-6, पृ. 160%;
हिन्दी जन भक्ति काव्य और कवि, पं. 256. 2. भायो सहज बसन्त खेलें, सब होरी होरा ।।
उत बुधि देया छिमा बहुगढ़ी, इत जियं रतन सजे गुन जोरा ॥ ज्ञान ध्यान डफ ताल बजत हैं. अनहद शब्द होत धनयोरा॥ घरम सुराग गुलाल उड़त हैं, समता रंग दुई ने घोरा ॥मायो0021.. परसल उत्तर भरि पिचकारी, छोरत दोनों कटि कटि जोरा। इततें कह नारि तुम काकी. उतते कहें कोन को छोरा ।। माठ काठ अनुभव पावक में, जल बुझ शांत भई सब मोरा ।। चानत शिव मानन्द चन्द छबि, देखे सज्जन नैन चकोरा 141 हिन्दी पद संग्रह, पृ. 119.