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है-री सखि, माज मेरे सौभाग्य का दिन है कि जब मेरा प्रिय से विवाह होने वाला है पर दु.स यह है कि वह अभी तक नहीं पाया। मेरे प्रिय सुख कन्द हैं, उनका शरीर चन्द्र के समान है इसलिए मेग प्रानंद मन सागर में लहरें ले रहा है। मेरे नेत्र-चकोर सुख का अनुभव कर रहे हैं जग में उनकी सुहावनी ज्योति फैली है, कीति भी छायी है, वह ज्योति दुःख रूप अन्धकार दूर करने वाली है, वाणी से अमृत झरता है । मुझे सौभाग्य से ऐसा पति मिल गया ।
एक अन्य कृति प्रध्यात्मगीत में बनारसीदास को मन का प्यारा परमात्मा रूप प्रिय मिल जाता है। प्रतः उनकी आत्मा अपने प्रिय (परमात्मा) से मिलने के लिए उत्सुक है । वह अपने प्रिय के वियोग में ऐसी तड़प रही है जैसे जल के बिना मछली तड़पती है । मन मे पति से मिलने की तीव्र उत्कंठा बढ़ती ही जाती है तब वह अपनी समता नाम की सखी से अपने मन में उठे भावों को व्यक्त करती है यदि मुझे प्रिय के दर्शन हो गये तो मे उसी तरह मग्न हो जाऊंगी जिस तरह दरिया में बूद समा जाती है। मैं अहंभाव को तजकर प्रिय से मिल जाऊंगी । जैसे प्रोला गलकर पानी में मिल जाता है वैसे ही मैं अपने को प्रिय में लीन कर दूंगी। माखिरकार उसका प्रिय उसके अन्तर्मन मे ही मिल गया और वह उससे मिलकर एकाकार हो गई । पहले उसके मन में जो दुविधाभाव था वह भी दूर हो गया।
दुविधाभाव का नाश होने पर उसे ज्ञान होता है कि बह और उसका प्रियतम एक ही है। कवि ने अनेक सुन्दर दृष्टान्तों से इस एकत्व भावको और अभिव्यक्त किया है । वह और उसके प्रिय, दोनों की एक ही जाति है । प्रिय उसके
1. सहि एरी ! दिन प्राज सुहाया मुझ भाया प्राया नही घरे ।
सहि एरी! मन उदधि अनंदा सुख-कन्दा चन्दा धरे । चन्द जिवां मेरा बल्लभ सोहे, नैन चकोरहि सुक्ख करे । जग ज्योति सुहाई कीरति छाई, बहुदुख तिमिर वितान हरे । सहु काल विनानी अमृतवानी, प्रक मृग का लांछन कहिये। श्री शांति जिनेश नरोत्तम को प्रभु, माज अाज मिला मेरी सहिये ।
बनारसीविलास, श्री शांतिजिन स्तुति, पद्य 1, पृ. 189. 2. मेरा मन का प्यारा जो मिल । मेरा सहज सनेही जो मिल ॥1॥
उपज्यो कंत मिलन को चाव । समता सखी सों कहै इस भाव ।।3।। मैं विरहिन पिय के माधीन । यों तलफों ज्यों जलबिन मीन ।।3।। बाहिर देखू तो पिय दूर । बट देखे घट में भरपूर ।।4।। होहं मगन में दरशन पाय । ज्यों दरिया में बूंद समाय ॥9॥ पिय को मिलों अपनपो खोय। प्रोला गलपाणी ज्यों होय ॥10॥ बनारसीविलास, प्रध्यातम गीत, 1-10, पृ. 159-160.