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गड ही सहायक सिद्ध हो सकता है ।" खुशालचन्द काला भगवान् की चरण सेवा का प्राश्रय लेकर संसार सागर से पार होना चाहते हैं 'सुरनर सेस सेवा करें जी चरण कमल की वोर, भमर समान लग्यो रहे जी, निसि-पासर भोर ॥12 कविवर दौलतराम अपने आराध्य के सिवा और किसी की चररण सेवा में नहीं जाना चाहते है
कवि बुधजन को भी जिन पारण में जाने के बाद मरण का कोई भय नहीं दिखाई देता । वह भ्रमविनाशक, तत्त्व प्रकाशक प्रौर भवदधितारक है
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सुरपति नरपति ध्यान घरत वर, करि निश्चय दुःख हरन को ||2|| या प्रसाद ज्ञायक निज मान्यौ, जान्यौ तन जड़ परन को । निश्चय सिसौ पे कवायतें, पात्र भयो दुख भरन को 1|3|| प्रभु बिन और नही या जग में, मेरे हित के करन को । बुधजन की अरदास यही है, हर संकट भव फिरन को 114113 मध्यकालीन हिन्दी जैन कवियों ने स्तुति श्रथवा वन्दनापरक सैकड़ों पद श्रौर गीत लिखे हैं । उनमें भक्त कवियों ने विविध प्रकार से अपने आराध्य से rrant की है। भट्टारक कुमुदचन्द्र पार्श्व प्रभु की स्तुति करके ही अपने जन्म
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जाउं, कहां शरन तिहारी ॥
चूक अनादि तनी या हमारी, माफ करों करुगा गुन धारं ॥ डुबत हों भवसागर में ब, तुम बिन को मोहि पार निकारं || सुन सम देव सबर नहि कोई, तातें हम यह हाथ पसारे || मौसम प्रघम अनेक ऊबारे, बरनत हैं गुरु शास्त्र अपारे । दौलत को भवपार करो प्रब. प्रायो है शरनागत थारे । 3
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हम शरन गह्यो जिन चरन को ।
बौरन की मान न मेरे, डर हुरह्यो नहि मरनको ||1|| भरम विनाशन तत्त्व प्रकाशन, भवदधि तारन तरन को ।
प्रभु बिन कौन हमारी सहाई । ........
जैन पदावली, काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका 15वां त्रैवार्षिक विवरण, संख्या 95; हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. 256.
चौबीस स्तुति पाठ, दि. जैन पंचायती मंदिर बड़ौत, संभवनाथजी की विनती, गुटका नं. 47, हिन्दी जन भक्ति काव्य और कवि, पृ. 335.
दौलत जैन पद संग्रह, पद 18, पृ. 11, इसी तरह का एक अन्य पद नं. 34 भी देखिये, हिन्दी पद संग्रह - द्यानतराय, पृ. 140.
बुधजन विलास, पृ. 28-29.