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निर्दोष है, पूर्ण ज्ञानी है, विरोधरहित है, प्रनादि अनंत है इसलिए जगत - शिरोमणि है, मारा जगत उनकी जय के गीत गाता है
अविनासी श्रविकार परमरसधाम है । समाधान सर्वज्ञ सहज प्रभिराम है । सुद्ध बुद्ध प्रविरुद्ध अनादि अनन्त है ।
जगत शिरोमनि सिद्ध सदा जयवंत है ||4|| 1
निहालचन्द ने भी सिद्ध रूप निर्गुण ब्रह्म को धोंकार रूप मानकर स्तुति की है । उन्हें वह रूप श्रगम, अगोचर, अलख, परमेश्वर, परमज्योति स्वरूप दिखा - 'प्रादि प्रकार आप परमेसर परम जोति' अगम अगोचर अलख रूप गायी है ।
यह ओंकार रूप सिद्धों को सिद्धि, सन्तों को ऋद्धि, महन्तों को महिमा, योगियों को योग, देवों और मुनियों को मुक्ति तथा भोगियों को मुक्ति प्रदान करता है । यह चिन्तामणि और कल्पवृक्ष के समान है । इसके समान और कोई भी दूसरा मन्त्र नहीं
सिद्धनको सिद्धि, ऋद्धि देहिसंतन को, महिमा महन्तन को देन दिन माही है, जोगी को जुगति हूं, मुकति देव, मुनिन कू, भोगी कू भुगति गति मतिउन पांही है । चिन्तामन रतन, कल्पवृक्ष, कामधेनु, सुख के समाज सब याकी परछांही है, कहैं मुनि हर्षचन्द निषेदेयज्ञान दृष्टि अंकार, मंत्र सम और मन्त्र नाहीं है ॥ बनारसीदास और तुलसीदास समकालीन हैं । कहा जाता है कि तुलसीदास ने बनारसीदास को अपनी रामायण भेंट की और समीक्षा करने का निवेदन किया । दूसरी बार जब दोनो सन्त मिले तो बनारसीदास ने कहा कि उन्होने रामायण को अध्यात्म रूप मे देखा है। उन्होंने राम को श्रात्मा के अर्थ में लिखा है और उसकी समूची व्याख्या कर दी है। श्रात्मा हमारे शरीर में विद्यमान है । अध्यात्मवादी अथवा रहस्यवादी इस तथ्य को समझता है । मिथ्या दृष्टि उसे स्वीकार नहीं करता | आत्मा राम है, उसका ज्ञान गुण लक्ष्मण है, सीता सुमति है शुभोपयोग वानर दल है विवेक ररणक्षेत्र है, ध्यान धनुषटंकार है जिसकी भावाज सुनकर ही विषयभोगादिक भाग जाते है, मिथ्यामत रूपी लंका भस्म हो जाती है, धारणा रूपी नाग
1. नाटक समयसार, 4, पृ. 5. जीवद्वार 2; ब्रह्मविलास - मैया भगवतीदास, सिझाय पृ. 125, सिद्ध चतुर्दशी 141.
हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि,
2.
पृ. 351.