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________________ मान नहीं रहता भौर तरुणावस्था में हृदय कामग्नि से दहकता रहता है तथा पवावस्था में मंग-प्रत्यंग विकल हो जाते हैं, तब बतानो, संसार में कौन-सी दशा सुखदायी है ? अन्त में कवि अनुभूतिपूर्ण शब्दों में कहता है, रे विद्वन्, संसार की इसी प्रसारता को देखकर अन्य लोग मोक्ष मान के अनुगामी बने । तुम भी यदि कमों से मुक्ति चाहते हो तो इस क्षणिक संसार से विरक्त हो जामो और जिनराज के द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर चलना प्रारम्भ कर दो मत राची धो-धारी। भंवरभ्रमरसर जानके, मत राची धीधारी ।। इनाजाल को ख्याल मोह ठग विभ्रम पास पसारी। पहुंगति विपतिमयी जामें जन, भ्रमत भरत दुख भारी ।। रामा मा, मा बामा, सुत पितु, सुता श्वमा, अवतारी । को प्रचंभ जहाँ माप मापके पुत्रदशा विस्तारी ।। घोर नरक दुख और न घोर न लेश न सुख विस्तारी ॥ सुर नर प्रचुर विषय जुरजारे, को सुखिया संसारी॥ मंडल है प्रखंडल छिन में, नप कृमि, सघन भिखारी । जा सुत-विरह मरी है वाघिनि, ता सुन देह विदारी ॥ शिशु न हिताहित ज्ञान, तरु उर मदन दहन परजारी। वृद्ध भये विकसंगी थाये, कौन दशा सुखकारी ।। यों मसार लस छार भव्य झट गये मोख-मग चारी। यातें होह उदास 'दौल' अब, भज जिनपति जगतारी ।। संसार का सुन्दर चित्रण गेन कथा साहित्य में मधुबिन्दु कथा के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है । एक व्यक्ति घनघोर जंगल में भूल गया । वह भयभीत होकर भटकता रहा । इतने में एक गज उसकी मोर दौड़ता दिखाई दिया। उसके भय से वह समीपवर्ती कुए में कूद पड़ा। कुए के किनारे लगे वटवृक्ष की शाखा को कूदते समय पकड़ लिया। उसमें मधुबिन्दुनों का छाता लगा हुमा था । उसकी बूंदों में उसकी मासक्ति पैदा हो गई। कूप के निम्न भाग में चार विकराल अजगर मुंह फैलाये उस व्यक्ति की मोर निहार रहे थे। इधर हाथी अपनी सूर से वृक्ष शाखा को झकझोर रहा था और जिस भाखा से बह लटका था उसे एक चूहा कार रहा था । मधुमक्खियां भी उस पर पाक्रमण कर रही थीं। इस कथा में संसार महावत है, भवभ्रमण कूप के समान है, गज यम है, मधुमक्खियों का काटना रोगादि का माक्रमण है, अजगर का कूप में होना निगोद का प्रतीक है, चार प्रज
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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