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पीछेतक इस नामके किसी आचार्यका पता नहीं लगता है, दूसरे 'स्वामिकुमारसेन' के नाममें यदि 'स्वामी' पद 'तत्त्वार्थसूत्रव्यान्याता' होनेके कारण है, और 'तत्त्वार्थसूत्र से श्रीउमास्वातिकृत तत्त्वार्थसूत्रका अभिप्राय है, तो तत्त्वार्थसूत्रकी रचना ही कुन्दकुन्दके समयमें नहीं हुई थी। क्योंकि उमाम्वाति कुन्दकुन्दके गियोंमें थे। ___ ऊपर कहा जा चुका है कि, यह ग्रन्थ केवल एक ही प्रतिमे सो भी जाण खंडिन तथा मूलमात्रपरस तयार किया गया है, इमलिये इसका सम्पादन जैसा होना चाहिये, वैसा अच्छा नहीं हो सका है । तो भी इसका शुद्धपाट लिखनेमें, संस्कृतछाया बनानेमें और अर्थ लिखनमें जितनी हम लोगोंकी शक्ति थी, उतना परिश्रम करनम कुछ भी कसर नहीं रक्खी है। इतनेपर भी यदि कुछ प्रमाद हुआ हो, तो उसके लिये हम पाठकोंसे क्षमा चाहते हैं। ___ पुस्तक जीर्ण होनक कारण जो अक्षर उड़ गये हैं, अथवा जो पड़े नहीं जाते हैं, उनके बदले हमने पूर्वापर अक्षरोंका सम्बन्ध मिलाकर कई स्थानों में अपनी ओरसे अक्षर कल्पित करके लिख दिये हैं। परन्तु पाठक ऐसे अक्षरोंको हमारे कल्पना किये हुए समझें इसलिये उन्हें कोप्टकके भीतर लिख दिये हैं। जिन शब्दोंका अभिप्राय समझमें नहीं आया है, अथवा जिनकी संस्कृतछाया ठीक २ नहीं मालूम हुई है, उनके आगे प्रश्नांक (?) लगा दिया हैं । यदि कहीं इस अलभ्य ग्रन्थकी दूसरी प्रति प्राप्त हो जायगी, तो अगामी संस्करणमें ये सब त्रुटियां अलग कर दी जावेगी ।
इति शुभम् ।
सरस्वतीसेवकमार्गशीर्षकृष्णा १४
मनोहरलाल गुप्त। श्रीवीर नि. २४३७ । .
नाथूगम प्रेमी।