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नाम है । महादेव के पुत्र षडाननका एक नाम कुमार है और एक नाम कार्तिकेय भी है। जान पड़ता है कि इसी कारण स्वामिकुमारका स्वौमिकार्तिकेय नाम भी पर्यायवाची होनेके कारण प्रचलित होगया है । और भी कई ग्रन्थकर्त्ताओंने इस तरह पर्यायवाची शब्द देकर अपना परिचय दिया है । जैसे कि 'पद्मनन्दिखामीने' अपना नाम एक जगह 'पंकजनन्दि' और दर्शनसार के कर्त्ता 'देवसेन' ने 'सुरसेन' लिखा है । 'खामिकुमारसेन' इस नाम में 'स्वामि' और 'सेन' ये दो पदवियां हैं । “तत्त्वार्थ सूत्रव्याख्याता स्वामीति परिपठ्यते " नीतिसारके इस वाक्यके अनुसार जो तत्त्वार्थसूत्रका व्याख्यान करनेवाला होता है. उसे स्वामी कहते हैं । और 'सेन' यह 'सेनसंघ' का सूचक पद है ।
कुमारसेन आचार्य जो विनयसेनके शिष्य थे, पीछेसे सन्यास - भंग हो जाने के कारण संघवाह्य कर दिये गये थे, और पीछे उन्होंने काष्ठासंघ चलाया था, ऐसा श्रीदेवमेनसूरिकृत दर्शनसार में लिखा है । इस लिये या तो स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्ष सन्यास भंग होनेके पहले ही ये बना चुके होंगे । क्योंकि काष्ठासंघकी जो दो चार भिन्न बातें है, वे इस ग्रन्थ में नहीं मालूम पड़ती हैं । या सेनसंघ और कोई आचार्य भी इसी नामके हुए होंगे, जिन्होंने स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा बनाई है । जो हो, परन्तु यह निश्चय है कि कुन्दकुन्दखामी से पहले स्वामिकुमार नहीं हुए हैं। क्योंकि एक तो सेनसंघकी पट्टावली में कुन्दकुन्दस्वामीके समय मे कई सौ वर्ष
१ - पाण्मातुर शक्तिधर कुमारः कचिदारणः । [ अमरकोष ] २ - कार्तिकेयो महासेनः शरजन्मा षडाननः । [ अमर० ]
३ --- श्रीमचन्द्राचार्य ने कार्तिकेयका एक नाम 'स्वामी' भी लिखा है ।