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जैनग्रन्थरलाकरे ... .
दोहा छन्द । गुन अरु धर्म सुथिर रहै, यश प्रताप गंभीर । कुशल वृक्ष जिम लह लहे, तिहिं मारग चल बीर ! ॥२.६।।
शिखरिणी। करे श्लाघ्यस्स्यागः शिरसि गुरुपादप्रणमनं * मुखे सत्या वाणी श्रुतमधिगतं च श्रवणयोः । * हदि स्वच्छा वृत्तिर्विजयि भुजयोः पौरुपमहो विनाप्येश्वर्येण प्रकृतिमहतां मण्डनमिदम् ॥ ९.७ ।।
कवित्त छन्द ।। बदन विनय नुकट सिर ऊपर, मुगुम्वचन कुंडल जुगकान । अतर शत्रुविजय भुजमडन, मुकतमाल उर गुन अमलान || त्याग महज कर कटक विगजन, गाभिन मत्य बचन मुम्ब पान। भूषण नदि त ऊ तन मडिन. यात मन्नपुरूष परधान || २७॥
भवारण्यं मुक्या यदि जिगमिषुर्मुनिनगरी : तदानी मा काविषयविपवृषु वमतिम । : यतश्छायाप्यषां प्रथयति महामोहमचिग
दयं जन्तुर्यम्मान्पदपि न गन्तुं प्रभवति ॥ १.८ ॥ नोट-नीचं लिये नीन मा. मुरको नामले
घनाक्षरी। गहै जे सुजन रीत गुणीमों निवाहै प्रीन,
मवा मांध गुरुकी विनसों कर जोरकै ।
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1 इस मूल भोकका भाषानुवाद किसी भी प्रतिमें नहीं है। Warrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr