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जैनग्रन्थरत्नाकरे
रोडक छन्द । कुमति कुरीत निवास; प्रीत परतीत निवारन । रिद्धसिद्धसुखहरन; विपत दारिद दुख कारन ।। परवंचन उतपत्ति; सहज अपराध कुलच्छन । सो यह मिथ्यावचन; नाहिं आदरत विचच्छन ॥३१॥
शार्दूलविक्रीडित । तस्याग्निर्जलमर्णवः स्थलमरिर्मित्रं सुराः किङ्कराः ___ कान्तारं नगरं गिरिरॅहमहिर्माल्यं मृगारिमृगः। पातालं बिलमस्त्रमुत्पलदलं व्यालः 'टगालो विषं पीयूषं विषमं समं च वचनं सत्याश्चितं वक्ति यः ३२
घनाक्षरी। पावकतै जल होय; वारिधतै थल होय, __ शस्त्रौं कमल होय; ग्राम होय बनते । कृपतै बिवर होय; पर्वततें घर होय, __ वासवतै दाम होय; हितू दुरजननैं ।। सिघनै कुरंग होय; व्याल म्यालअंग होय,
बिष पियूष होय; माला अहिफनतें । विषमतै सम होय; संकट न व्याप कोय, ___एते गुन होय सत्य; वादीके दरसते ॥ ३२ ॥
अदत्तादान अधिकार।
मालिनी। तमभिलपति सिद्धिस्तं वृणीते समृद्धि
स्तमभिसरति कीर्तिर्मुञ्चते तं भवार्तिः ।
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