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आपकी भूल है; यह स्वर्ग है, यहांपर मित्रता और शत्रुताके सम्बन्ध दूर हो जाते हैं और दुर्योधन रणभूमिमें मारे जानेके कारण स्वर्गमें आया है" । युधिष्ठिर बोले "यह सब ठीक है; पर मैं अपने भाइयोंके साथ रहना चाहता हूं। बताइये, कर्ण कहां है, द्रौपदी कहां है, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव कहां हैं, विलम्ब न कीजिए; मुझको वहां ले चलिये, मेरी आंखोंको उन प्यारी आकृतियोंको देखकर सुख मिलेगा । मै सच कहता हूं, मैं यहां न ठहरूंगा; यदि मेरे भाई साथ नहीं हैं, तो यह स्वर्ग भी मेरे लिए वर्ग नहीं है" ।
देवताओंने एक दूतको आज्ञा दी कि, जाओ इनको इनके प्यारे मित्रोंके पास ले जाओ । युधिष्ठिर उस दूतके साथ चल पड़े ।
रास्ते में कुछ भी दिखाई नहीं देता था और बड़ा अन्धेरा छाया हुआ था यहां तक कि हाथको हाथ नहीं सूझता था । ज्यों २ वे आगे बढ़े चले गए, त्यों २ अन्धेरा और भी बढ़ता जाता था । पैरों तले मनुष्योंकी खोपरियां पड़ी हैं, सड़े हुए शवसे अत्यन्त दुर्गन्ध आ रही है, धरती रुधिर के कारण चिकनी हो गई है, प्रतिक्षण पैरोंके फिसलनेका डर है । कहीं तो नुकीले कांटे हैं कहीं चुभने वाली पैनी झाड़ियां हैं, कहीं झुलसनेवाली रेत है और कहीं अंगारोंकी नांई उष्ण पत्थरोंके टुकडे पैरोंके नीचे आते हैं । युधिष्ठिर बहुत घबरा गए और कहने लगे, - "यहां सांस घुटता है और दुर्गंध मारे प्रकृति घबरा गई हैं" । दूत बोला"मुझे केवल यहां तक आनकी आज्ञा थी; यदि आपकी इच्छा हो या आप घबरा गए हों तो उलटे चलिये" ।
युधिष्ठिरका हृदय वशमें नहीं रहा था, उन्होंने मुंह फेर
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