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बढ़कर ईश्वर परमात्मापर ही भरोसा रक्खूंगा और जो काम उसको पसन्द होगा, वही करूंगा ।
संतोषी मनुष्य के पास ईर्षा विरोध द्वेष और क्रोध कदापि नहीं फटकते; यद्यपि ये उसके हृदयके पास आकर उसके भीतर प्रवेश करना चाहें तथापि वह दृढमति होकर इनको स्वीकार नहीं करता, क्योंकि यदि ये एक बार भी संतोषरूपी गृहमें प्रविष्ट हो जाएं, तो इनके रहते समय शान्ति कहां ? पर यदि विश्वास आशा और प्रेम भीतर उपस्थित हैं तो फिर इन बिना बुलाये आनेचालों से कुछ भी खेद न होगा ।
संतोष बड़ी उत्तम वस्तु है, शोभायमान हो जाते हैं । उनके
इससे स्त्री पुरुषोंके चरित्र बड़े मुखोंपर तेज और उनके जीनमें मनोहारिता प्रतीत होती है । उनके वाक्य में बड़ी शान्ति भासती है और इससे उनकी भीतरी शान्ति प्रकट होती है । उनके रूपसे भी शान्ति बरसती हैं, वे उन्मत्तोंकी नाई संकेत नहीं करते और न घबराकर बातें करते हैं । वे बनावटी कष्ट और दुःखकी बातें सुनाकर इतर जनोंके वृथा कर्णछेद नहीं करते, वरञ्च जो लोग उनको जानते हैं उन सबके लिए वे बड़े आनन्ददायी और ब्रह्मखरूप हैं ।
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(ट) सहानुभूति ।
जब तक कि हम अपने आपको वशमें न कर लें, स्वार्थको न छोड़ दें, विद्वेष और अभिमानको न त्याग दें, और जब तक हम अपनी ही बड़ाई और रक्षाका ध्यान रखते हैं, तब तक हम