SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खेवत हैं। सब पाप जलावै, पुण्य कमावै, दास कहावें, सेवत हैं। तीर्थं० सो०॥७॥ ॐ ही श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै धूपं निवपामि ।। बादाम छुहारी, लोंग सुपारी, श्रीफलभारी, ल्यावत हैं। मनवांछित दाता, मेंट असाता, तुम गुन माता, गावत हैं। तीर्थ सो०॥ ८॥ __ ॐ हीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै फलं निर्वपामि ।। नयननसुखकारी, मृदुगुनधारी, उज्ज्वलभारीमोल धरै ।शुभगंधसम्हारा, वसननिहारा, तुमतरधारा, ज्ञानकरै । तीर्थ सो०॥९॥ ॐ हीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदव्य वस्त्रं निर्वपामि ।। जलचंदन अच्छत, फूल चरोंचत, दीपधूप अति, फल लावें। पूजाको ठानत, जोतुम जानत, सो नर द्यानत, सुख पावै ।। तीर्थ० सो० ॥१०॥ ॐ ही श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै अयं निर्वपामि ॥ अथ जयमाला। सोरठा ओंकार धुनिसार. द्वादशांग वाणी विमल । नों भक्ति उरधार, ज्ञान करै जड़ता हरे॥१॥
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy