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ॐनी श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै चन्दनं निर्वपानीति स्वाहा।
सुखदासकमोदं, धारप्रमोदं, अतिअनुमोद, चंदसमं। बहुभक्ति बढ़ाई, कीरतिगाई, होहु सहाई, मात मम।। तीर्थ सो० ॥३॥ ॐन्हीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै अक्षतान् निर्वपामि ।।
बहुफूलसुवासं, विमलप्रकाशं,आनंदरासं, लाय घरे । मम काम मिटायो, शीलबढ़ायो, सुखउपजायो, दोष हरे । तीर्थ सो०॥४॥
ॐ हीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै पुष्पं निर्वामि ।।
पकवान बनाया, बहुघृत लाया. सरविधि भाया, मिष्ट महा । पूजू थुति गाऊं, प्रीति बढ़ाऊं, क्षुधा नशाऊं, हर्ष लहा ॥ तीर्थ सो०॥५॥ ॐ -ही श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै नैवेद्य निषामि ॥
कार दीपक ज्योतं, तमय होतं, ज्योति उदोतं, तुमहिं चढ़े। तुम हो परकाशक, भरमविनाशक, हम घटभासक ज्ञान बढ़े।तीर्थसो०॥६॥
ॐ हीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै दीपं निपामि ।। शुभगंध दशोंकर, पावकमें घर, धूप मनोहर.