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कवि और काव्य
कवि
जिस काव्य के रसास्वादन से सहृदय को अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है, उस काव्य के रचयिता अर्थात् कवि का स्वरूप क्या है ? इसकी जिज्ञासा का होना स्वाभाविक है। इस विषय मे अलकार-शास्त्रियो ने दो प्रकार से विचार व्यक्त किए हैं । प्रथम कोटि मे वे लोग आते हैं जिन्होने कवि का स्वरूप स्पष्ट रूप से लिख दिया है -जैसे आवार्य राजशेखर विनयचन्द्रसूरि, विजयवर्णी एव अजितसेन आदि । द्वितीय कोटि मे वे लोग आते है जि होने काव्य-कारण के “याज से कवि-स्वरूप का निरूपण किया है-जमे आचार्य भामह, दण्डी, मम्मट, वाग्भट-प्रथम, हेम वन्द्र, नरेन्द्रप्रभसूरि, वाग्भट द्वितीय एव भावदेवसूरि आदि।
अलकार सम्प्रदाय के प्रतिनिधि आचार्य भामह ने कवि का स्वरूप स्पष्ट रूप से न कहकर काव्य-कारण के व्याज से कहा है। उन्होने लिखा है किव्याकरण, छन्द, अभिधान (कोश) अर्थ, इतिहास के आश्रित कथाएँ, लोक ध्यवहार, तर्कशास्त्र और कलाओ का काव्य-रचना के लिये कवि को मनन करना चाहिए ' । यह सम्पूर्ण विवेचन व्युत्पत्ति के अन्तर्गत आता है, अत जिस व्यक्ति को उपयुक्त विषयो का ज्ञान हो वह अभ्यास के माध्यम से कविता कर सकता है अर्थात् वह कवि है । राजशेखर ने 'कव वर्णने' धातु से कवि की उत्पत्ति मानी है, जिसका अर्थ होता है वर्णन-कर्ता अर्थात् जो वर्णन करे वह कवि कहलाता है । इसके अतिरिक्त उन्होंने अन्यत्र लिखा है कि प्रतिभा और व्युत्पत्ति से युक्त कवि, कवि कहलाता है । आचार्य दण्डी ने काव्य-सम्पदा के कारणो के ध्याज से कवि की योग्यता का परिचय देते हुए लिखा है कि
१ काव्यालकार, भामह, १६ । २ काव्यमीमासा, पृ० १७ । ३. प्रतिभाव्युत्पत्तिमाश्च कवि कविरित्युच्यते। -काव्यमीमांसा, पृ. ४३ ॥