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ज्योतिष का समावेश किया गया है।
आज जनसंख्या के दबाव में भूखंड का आकार मनचाहा मिलना कठिन हो गया है। ऐसी स्थिति में अनियमित आकारों को वास्तु-विद्या में और व्यावहारिक परपरा में जो छूट मिली है, उसका लाभ लिया जाए।
(इसीप्रकार बने-बनाए मकान बिकने का चलन होने से वास्तु-विद्या का यह नियम नहीं चल पाता कि किस दिशा में किस आकार का शयनकक्ष या रसोई या स्नानगृह आदि हो। ऐसी स्थिति में कम-से-कम इतना तो देख ही लिया जाए कि जो जहाँ-जैसा बना है, वह वास्तुशास्त्रीय दृष्टि से सही है या नहीं; सही नहीं हो, तो वह मकान रहने योग्य नहीं माने ।) भूमि की शुद्धता : सल्य-शोधन यंत्र
प्रस्तावित भूमि को जोतने पर या ऊपर-ऊपर खोदने पर जो चीजें बाहर दिखने लगे, उनका सामुद्रिक शास्त्र से, शकुन-अपशकुन की दृष्टि से निरीक्षण किया जाए; शुभ वस्तुओं का फल शुभ होगा, अशुभ वस्तुओं का फल अशुभ होगा। खोपड़ी, हड्डी, चमड़ा, बाल, कोयला, राख, लोहा आदि अशुभ वस्तु, यानी शल्य, भूमि में कुछ गहराई पर भी हो सकती है, जिसे निर्माण कार्य के प्रारभ मे खुदाई करके दूर कर देना चाहिए।
अशुभ वस्तुओं का पता लगाने के लिए, भूमि मे कहाँ-कहाँ खुदाई की जाए, यह जानने के लिए, प्रस्तावित भूमि को नौ भागो मे विभक्त करके प्रत्येक को एक अक्षर का नाम दिया जाए, जैसा कि प्रस्तुत शल्य-शोधन यंत्र में दिया गया है।
एक पट्टी पर खड़िया से या सफेद चाक से यह मंत्र लिखा जाए. "ओं हीं श्रीं ऐं नमो वाग्वादिनि, मम प्रश्ने अवतरअवतर।" -यह मत्र किसी कुमारी कन्या से वायव्य | उत्तर ऐशान! तीन बार पढवाया जाए, तथा उस पर जल के छीटे दिए जाये। तब वह उस पट्टी को या एक नारियल विनय के साथ दोनों हाथो से पश्चिम मध्य लिए पूर्व दिशा मे मुँह करके खडी रहे। उस
त चक कन्या को वे नौ अक्षर नही बताए जाएँ, यह भी न बताया जाए कि किस भाग को किस
नैर्ऋत्य दक्षिण | आग्नेय अक्षर का नाम दिया गया है। अब उसे कोई शल्य शोधन-यत्र
जन वास्तु-विधा
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