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कुछ धूल हवा में उछालें। वह धूल उड़कर नीचे की ओर जाए, तो मानें कि वह भूमि निम्नप्रकार की है और उसके निवासी की भविष्य में निम्नगति संभव है। धूल नीचे-ऊपर न जाकर मध्य में रह जाए, तो मानें कि वह भूमि मध्यम प्रकार की है और उसके निवासी की भविष्य में मध्यम गति संभव है। वह धूल उड़कर ऊपर की ओर जाए, तो भूमि उत्कृष्ट प्रकार की मानें और उसके निवासी की भविष्य मे उत्तम गति की संभावना मानें। भूमि के चयन में ध्यान रखने योग्य बातें
मंदिर से सटी हुई भूमि (भूखंड या प्लॉट) कष्टदायक हो सकती है। यहाँ तक कि जिस भूमि पर किसी मंदिर की छाया पड़ती हो, विशेषरूप से दूसरे-तीसरे प्रहर में (नौ बजे सवेरे से तीन बजे शाम तक), उस भूमि से कष्ट-ही-कष्ट मिलेगा। जो भूमि किसी और के मकान की सीमा में या चौक में हो उससे गृहस्वामी को हानि हो सकती है। दो विस्तृत भूखंडों के बीच फंसा छोटा भूखंड कष्टदायक हो सकता है। किसी धूर्त आदमी या किसी मंत्री के घर के पास जो भूमि होगी, उसके स्वामी को पुत्र से या धन से या दोनों से हाथ धोना पड़ सकता है।
किसी विशेष कारण से भूमि का विस्तार करना पड़े, तो वह आगे या दाएँ या बाएँ ही किया जाए, पीछे कभी भी नहीं। भूमि का आकार और स्थिति
वास्तु-विद्या के अनुसार भूखंड (प्लॉट) सम-चतुष्कोण' हो, तो सबसे अच्छा । आयाताकार यानी लंबाई से चौड़ाई कम, या, चौड़ाई से लबाई कम हो तो भी अच्छा; पूर्व-पश्चिम में लम्बाई अच्छी, उत्तर-दक्षिण में लम्बाई कम अच्छी। वृत्ताकार (गोल) भूखंड भी अच्छा ही है। लेकिन वर्तुलाकार (स्पायरल) का निषेध है। राजा यदि चाहे, तो उसके लिए वर्तुलाकार भवन का विधान है। त्रिकोण भूखंड सभी के लिए अशुभ है।
दक्षिण में रिक्तस्थान न रखा जाए: कुछ रखना ही पड़े, तो उससे कम ज़रूर हो, जितना उत्तर में हो। -यह ऐसा नियम है, जो झोपड़ी से लेकर महल तक और कार्यालय से लेकर कारखाने तक सब पर लागू होता है। रिक्तस्थान पश्चिम की अपेक्षा पूर्व में अधिक हो, तो शुभकारक होगा। ___ राजा, मंत्री, सेनापति. पुरोहित आदि की दृष्टि से और ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि की दृष्टि से भूखडों के आकार निर्धारित किए गए हैं। इसमें भी
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