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दूसरा उपाय यह है कि वैसे ही गड्ढे में मिट्टी के बदले पानी भर दिया जाए। वह भूमि पानी सोखने में जितना अधिक समय ले, उतनी ही ठोस वह मानी जाए। जो भूमि पानी बहुत कम समय में सोख ले, उस पर निर्माण नहीं करना चाहिए। __ भूमि के ठोसपन की जाँच का एक उपाय और भी है। उस भूमि पर उन दिनों उगनेवाला अनाज बोया जाए। उसमें जितनी जल्दी अंकुर आ जाएँ, उतनी ही उत्तम वह भूमि मानी जाए। जिस भूमि पर या उसके किसी भाग पर अंकुर बहुत देर से आएँ, या आएँ ही नहीं; उस पर मकान, मंदिर आदि नहीं बनाया जाए। भूमि के शुभ या अशुभ होने की जाँच ___ वास्तु-विद्या में भूमि के शुभ या अशुभ होने की जाँच के भी बहुत ही मनोरंजक, लेकिन पौराणिक उपाय प्रचलित रहे हैं। ये उपाय वर्ण-व्यवस्था की ओर संकेत करते हैं, परंतु इनका मनोवैज्ञानिक महत्व भी है। __प्रस्तावित भूमि में लगभग दो फुट लंबा-चौड़ा गड्ढा खोदकर उसमें चार पुष्प-मालाएँ अलग-अलग रखी जाएँ: ब्राह्मण की सफेद, क्षत्रिय की लाल, वैश्य की पीली और शूद्र की काली। सबसे ज़्यादा देर में सूखनेवाली माला अपने वर्णवाले निर्माता के लिए कल्याणकारी होगी। इसके विपरीत, सबसे पहले सूखनेवाली माला के वर्णवाले निर्माता को वह भूमि अशुभ हो सकती है।
प्रस्तावित भूमि में लगभग दो फुट लंबा-चौड़ा गड्ढा खोदकर उसमें चारों दिशाओं में एक-एक दीपक जलाकर रखा जाए: पूर्व में ब्राह्मणों के लिए, दक्षिण में क्षत्रियों के लिए, उत्तर में वैश्यों के लिए और पश्चिम में शूद्रों के लिए। सबसे अधिक देर तक जलता रहनेवाला दीपक अपने वर्ण वाले निर्माता के लिए शुभ होगा। सबसे कम देर तक जलनेवाला दीपक अशुभ का सूचक माना जाए। या फिर, उस गड्ढे में चार के बदले एक ही दीपक रखा जाए, परंतु उसमें उसी प्रकार चारों वर्गों की प्रतीक चार बत्तियाँ हों। सबसे अधिक देर तक जलती रहनेवाली बत्ती अपने वर्णवाले निर्माता के लिए कल्याणकारी होगी। सबसे कम देर तक जलनेवाली बत्ती हानिकारक हो सकती है।
भूमि के उत्तम, मध्यम या निम्नप्रकार जानने के लिए उसी भूमि की