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मान्यताओ को मोक्षतत्व सम्बन्धी जीव की भूल बताया है || || • अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे श्रद्धा को अगृहीत मिथ्यादर्शन बताया है ॥ अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे ज्ञान को अगृहीत मिथ्याज्ञान बताया है || ३ || अनादिकाल से एक-एक समय करके चना आ रहा होने से ऐसे आचरण को अगृहीत मिथ्याचारित्र बताया है ॥४॥ वर्तमान मे विशेष रूप से मनुष्य भव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुदेव - कुगुरु-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी ऐसी मान्यताओ के श्रद्वान को गृहीत मिथ्यादर्शन बताया है ||५|| " वर्तमान मे विशेष रुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुदेव- कुगुरु-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी मान्यताओ के ज्ञान को गृहीत मिथ्याज्ञान है || ६ || • वर्तमान मे विशेष रुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुगुरु- कुदेव - कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी मान्यताओ के आचरण को गृहीत मिथ्याचारित्र बताया है ॥७॥
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प्र० २४ - मोक्षतत्व सम्बन्धी जीव की भूलरुप अगृहीत मिथ्यादर्शनादि और गृहीत मिथ्यादर्शनादि अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति कर क्रम से पूर्ण सुखीपना कैसे प्रगट होवे । इसका उपाय छहढाला की दूसरी ढाल मे दया बताया है ?
उत्तर-चेतन को है उपयोग रुप, विनमूरत चिन्मूरत अनुप । पुद्गल नभ धर्म अधर्म काल, इनते न्यारी है जीव चाल || (१) मैं ज्ञान - दर्शन उपयोगमयी जीवतत्व है । (२) मेरा कार्य ज्ञातादृष्टा है । (३) आख-नाक-कान औदारिक आदि शरीरोरुप मेरी मूर्ति नही है । ( ४ ) चैतन्य अरुपी असख्यात प्रदेशी मेरा एक आकार है । (५) सर्वज्ञ स्वभावी ज्ञान पदार्थ होने से मुझ आत्मा ही अनुपम है । ( ६ ) मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व मे अनन्त जीव द्रव्य है