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मान्यताओ को निर्जरातत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल बताया है ॥ १ ॥ अनादिकाल से एक - एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे श्रद्धान को अगृहीत मिथ्यादर्शन बताया है ॥२॥ अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे ज्ञान को अगृहीत मिथ्याज्ञान बताया है || ३ || अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे आचरण को अगृहीत मिथ्याचारित्र बताया है ॥४॥ वर्तमान मे विशेषरूप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुगुरू-कुदेव कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी मान्यताओ के श्रद्धान को गृहीत मिथ्यादर्शन बताया है ॥५॥ वर्तमान मे विशेषरुप से मनुप्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुगुरु- कुदेव - कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी मान्यताओ' के ज्ञान को अगृहीत मिथ्याज्ञान बताया है || ६ || वर्तमान मे विशेषरूप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने से भी कुगुरू- कुदेव - कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी मान्यताओ के आचरण को गृहीत 'मिथ्याचारित्र बताया है ॥ ॥
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प्र० २२ - निर्जरातत्त्व सम्बन्धी जीव की मूलरुप अगृहीत- गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभष्व होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति कर क्रम से सुखीपना कैसे प्रगट होवे इसका उपाय छहढाला की दूसरी ढाल मैं क्या बताया है ?
उ०- चेतन को है उपयोगरुप, बिनमूरत, चिन्मूरत अनूप | पुद्गल नभ धर्म-अधर्म काल इनते न्यारी है जीव चाल । (१) मैं ज्ञानदर्शन उपयोगमयी जीवतत्त्व हैं । (२) मेरा कार्य ज्ञाता - दृष्टा है । (३) आखनाक-कान औदारिक शरीरोरुप मेरी मूर्ति नही है । ( ४ ) चैतन्य अरुपी असख्यात प्रदेशी मेरा एक आकार है । (५) सर्वज्ञ स्वभावी ज्ञान पदार्थ होने से मुझ आत्मा ही अनुपम है । (६) मुझ निज आत्मा के अलावा विश्व मे अनन्त जीव द्रव्य है- उनकी चाल मुझ जीव से