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(७५) वन्ध को बुग जानना और अचौर्य के भाव से देवादि के बन्ध को भला जानना। (४) कुशील के भाव से नरकादि के बन्ध को बुरा जानना और ब्रह्मचर्य के भाव से देवादि के वन्ध को भला जानना। (५) परिग्रह रखने के भाव से नरकादि के वन्ध को बुरा जानना और अपरिग्रह के भाव से देवादि के बन्ध को भला जानना।(६)सप्तव्यसन के भाव से नरकादि के वन्ध को बुरा जानना और सप्तव्यसन के भाव के अभाव से देवादि के बन्ध को भला जानना (७) कुगुरु-कुदेव-कुधर्म के मानने से नरकादि के बन्ध को बुरा जानना और सच्चे देव-गुरुधर्म के मानने से देवादि के बन्ध को भला जानना । (८) दुःखी करने के भाव से नरकादि के बन्ध को बुरा जानना और सुखी करने के भाव से देवादि के बन्ध को भला जानना। (६) अद्रतादि के भाव से नरकादि के बन्ध को बुरा जानना और व्रतादि के भाव से देवादि के बन्ध को भला जानना। (१०) देव को मानने के भाव से नन्कादि के बन्ध को कुरा जानना और देव को मानने के भाव से देवादि के वन्ध को भला जानना । · इत्यादि मान्यताओ को वन्धतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल बताया है ||१|| अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे श्रद्धान को अगृहीत मिथ्यादर्शन बताया है ।।२॥ अनादिकाल से एक-एक समय क.के चला आ रहा होने से ऐसे ज्ञान को अगृहीत मिथ्याज्ञान बताया है ।।३।। • अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे आचरण को अगृहीत मिथ्याचारित्र बताया है ॥४॥ " वर्तमान में विशेष रुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुगुरु-कुदेव-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी मान्यताओ के श्रद्धान को गृहीत मिथ्यादर्शन बताया है।॥५॥ .. वर्तमान में विशेषरुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुगुरु-कुदेव-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी मान्यताओ के ज्ञान को गृहीत मिथ्याज्ञान बताया है ।।६।। " वर्तमान मे विशेषरुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुदेव-कुगुरु-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी