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गई है। (१६) मेरा माथा, नेरा कान मेरे ३२ दात हैं। (१७) मैं मनुष्य, मै त्रिर्यच, मैं क्षत्रिय, मैं वैश्य हूँ। (१८) ये मेरे मां-बाप है। ये मेरी धर्मपत्नी और बच्चे है। (१०) ये मेरे मित्र हैं ये मरे दुश्मन है। इत्यादि जो सजीव को अवस्थाये है उन्हे अपनी मानने रूप मिथ्या मान्यताओं को अजीव तत्व सम्बन्धी जीव की भुल बताया है।॥१॥" अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे श्रद्धान को अगृहीत मिथ्या दर्गन बताया है ॥२॥ "अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे ज्ञान को अगृहीत मिथ्या ज्ञान बताया है ॥३॥ अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे आचरण को अगृहीत मिथ्याचारित्र बताया है ॥४॥ वर्तमान में विशेष रुप से मनुष्य भव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुदेव-कुगुरु-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी मान्यताओं को गृहीत मिथ्यादर्शन बताया है ॥५॥ वर्तमान मे विशेषरुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुदेव-कुगुरु-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी मान्यताओ को गृहीत मिथ्याज्ञान बताया है ।।६।। वर्तमान में विशेषरुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुदेव कुगुरु-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी मान्यताओ को गृहीत मिथ्याचारित्र बताया है।
प्र० १४-शरीर की उत्पत्ति (संयोग) होने से मै उत्पन्न हुआ और शरीर का नाश (वियोग) होने से मैं मर जाऊंगा-आदि ऐसी अजीवतत्व सम्बन्धी जीव की भूल रुप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि को प्राप्ति कर कम से पूर्ण सुखीयना कैसे प्रगट होवे-इसका उपाय छहढाला की दूसरी ढाल मे क्या बताया है ?
उ०-चेतन को है उपयोगरुप, बिनमूरत, चिन्मूरत ज । पुद्गल नभ धर्म-अधर्म काल, इनतै न्यारी है जीव चाल ।। (१) . उपयोगमयी जीवतत्त्व हूँ। (२) मेरा कार्य ज्ञाता हष्टा है ।