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________________ (६०) उ०-ऐसी खोटी मान्यता का फल चारों गतियों में घूमकर निगोद जाना बताया है। प्र० १२५-शरीर के मौज-शौक में भी मोक्ष सुख रुप मान्यता का फल चारों गतियों मे घूमकर निगोद क्यो बताया है ? उ.-मोक्ष मे आकुलता का सर्वथा अभाव है और पूर्ण स्वाधीन निराकुल सुख है। परन्तु शरीर के मौज-शौक मे मोक्ष से अधिक सुख है ऐसा मानने का फल चारो गतियो मे घूमकर निगोद जाना बताया है । प्र० १२६-'शिवरुप निराकुलता न जोय।' छहढ़ाला की दूसरी ढाल के इस दोहे मे मोक्षतत्व सम्बन्धी जीव की भल बताने के पीछे क्या मर्म है ? उ०-मोक्षनत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्ट ज्ञान कराना है। (१) आत्मा की परिपूर्ण शुद्ध दशा का प्रगट होना मोलतत्त्व है उसमे आकुलता का सर्वथा अभाव है और पूर्ण स्वाधीन निराकुल सुख है। 'इस बात को भूलकर शरीर के मौज-शौक से भी मोक्षसुख मानना मोक्षतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल है। (२) आत्मा की परिपूर्ण शुद्ध दशा का प्रगट होना मोक्षतत्त्व है। उसमे आकुलता का सर्वथा अभाव है और पूर्ण स्वाधीन निराकुल सुख है। इस बात को भूलकर शरीर के मौज-शौक से भी मोक्षसुख मानना-सा अनादिकाल का श्रद्धान अगृहीत मिथ्यादर्शन है। (३) आत्मा की परिपूर्ण शुद्धदशा का प्रगट होना मोक्षतत्व है। उसमे आकुलता का सर्वथा अभाव है और पूर्ण स्वाधीन निराकुल सुख है। इस बात को भूलकर शरीर के मौजशौक से भी मोक्षसुख जानना-ऐसा अनादिकाल का ज्ञान अगृहीत मिथ्याज्ञान है। (४) आत्मा की परिपूर्ण शुद्धदशा का प्रगट होना मोक्षतत्त्व है । उसमे आकुलता का सर्वथा अभाव है और पूर्ण स्वाधीन निराकुल सुख है। इस बात को भूलकर शरीर के मौज-शौक से भी मोक्षसुख मानना-ऐसा अनादिकाल का आचरण अगृहीत
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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