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अंगृहीत गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया। परन्तु जो अपने को ज्ञानी मानते हैं वह भी निश्चय सम्यग्दर्शनादि को कठिनादि है ऐसा कहते. सुने-देखे जाते हैं। क्या ज्ञानियो को भी सवरतत्त्वे सम्बन्धी जीव की
भूलरुप अगहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि होते हैं। ___' उ.-ज्ञानियो को विल्कुल नहीं होते है। (१) क्योकि जिनजिनवर और जिनवरवृषभो ने निश्चय सम्यग्दर्शनादि को कष्टदायक और समझ मे न आवे-ऐसी मान्यता को सवरतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहित मिथ्यादर्शनादि बताया है, परन्तु ऐसे कथन को नहीं कहा है । (२) ज्ञानी जो वनते हैं वे सवरतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव करके ही बनते है। (३) ज्ञानियो को हेय-जेय-उपादेय का जान वर्तता है। (४) निश्चय सम्यग्दर्शनादि को कठिन है जानियो के ऐसे कथन को आगम मे उपचरित सद्भुत व्यवहारनय कहा है। . ..
.. प्र ८६-निश्चयं वचन गुप्ति तो फष्टदायक समझ मे न आवे और मौन धारण करने के भाव वचनगुप्ति है । इस वाक्य पर सवरतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिए ? .
उ०-प्रश्नोत्तर ८१ से ८८ तक के अनुसार उत्तर दो।
- 'प्र० ६०-निश्चयकायगुप्ति तो कष्टदायक और समझ मे न आवे और गमनादि न करना कायगुप्ति है। इस वाक्य पर संवरतत्त्व सम्बन्धी जीव को भूल का स्पष्टीकरण कीजिए ? ... .
उ०-प्रश्नोत्तर ८१ से,८८ तक के अनुसार उत्तर दो। .. . प्र. ९१-निष्चय ईर्या समिति तो कप्टदायक समझ मे न आवे और चार हाथ जमीन देखकर चलने का भाव ईर्या समिति है। इस