SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४७ ) उ०-प्रश्नोत्तर ६१ से ६८ तक के अनुसार उत्तर दो। प्र० ७८-तीर्थयात्रा न करने के भाव से नीच गति का बन्ध बुरा है और तीर्थयात्रा करने से भाव से उच् ति का बन्ध अच्छा है। इस वाक्य पर बन्धतत्व सम्बन्धी जीव को भूल का स्पष्टीकरण कीजिए। उ०-प्रश्नोत्तर ६१ से ६८ तक के अनुसार उत्तर दो। प्र० ७६-व्यापार मे हिसा होने के भाव से नरक बन्ध बुरा है और व्यापार मे हिसा होने के भाव से देव का बन्ध अच्छा है। इस वाक्य पर बन्धतत्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिए। उ.-प्रश्नोत्तर ६१ से ६० तक के अनुसार उत्तर दो। प्र०८०-जीवो को दुखी करने से नरक का बन्ध बुरा है और जीवो को सुखी करने से देव का बन्ध अच्छा है । इस वाक्य पर बन्धतत्व सम्बन्धी जीन की भूल का स्पष्टीकरण कीजिए । उ०-प्रश्नोत्तर ६१ से ६८ तक के अनुसार उत्तर दो। संवरतत्व सबन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण प्र०८१-संवरतत्व के विषय मे अज्ञानी क्या मानता है ? उ०-निश्चय सम्यग्दर्शनादि को कण्टदायक और समझ मे न आवे-ऐसा मानता है। प्र०८२-निश्चय सम्यग्दर्शनादि को कष्टदायक और समझ मे न आवे-ऐसी मान्यता को छहढाला की प्रथम ढाल मे क्या बताया उ०-"मोह महामद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि ।" अर्थात् निश्चय सम्यग्दर्शनादि को कष्टदायक और समझ मे न आवे-ऐसी खोटी मान्यता को मोहरुपी महामदिरापान बताया है।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy