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कुस्ती में अपने से दूने पहलवान ढाता था, ताल ठोक कर बडे-बडे योधाओ को डरपाता था ।। वेधि देहे था कठिन निशाना लेकर तीर कमाती को |हाय०४॥ मेरे थप्पड से दुश्मन का निकल जवाडा आता था, मेरे सर से सर दुश्मन का नरियल सा फटि जाता था । मेरा कुहनी से दुश्मन का चूर चूर हो जाता था, मेरी टेटी नजर देखि दुश्मन का दिल थर्राता था । मुबके से सीधा करता था बडे बडे अभिमान को॥हाय०५।। भरा जवाडा था मुह मे वत्तीमो दाँत चमकते थे, कश्मीरी सेवो के सदृश कल्ले सुर्ख दमकते थे । उन्नत मस्तक गोल चाद सा नयना दिव्य ज्योति वाले, घू घर वाले के सिर पर नागिन से काले काले ॥ तनी हुई मूछे मुह पर जतलाती थी मर्दानी को ।हाय०|| हष्ट पुष्ट था बदन गठीला सुन्दर सुदृढ सजीला था, गज की सू डी समान भुजाये हृदयस्थल जोशीला था । सिह समान पराक्रम था सव अग अग फुर्तीला था, थम समान पुष्ट जंवाये कोई अग न ढाला था । देता था निकलि पृथ्वी से लात मारकर पानी को ॥हाय०७॥ दूरि दूरि के पहलवान भी मुझे देखने आते थे, गुजरानी पजाबी सिन्धी सरहद्दी शरमाते थे। वाह वाह करते थे मेरी देखि सलौनी सूरत को, रचि विधाता ने आकर क्या ऐसी सुन्दर मूरत को । नीची अचकन चुस्त पजामा साके रग के धानी को महाय ।। जैसा था मै बली साहसी वैसा ही था व्यौपारी, पुरुपारथ से धन सचय करि भरि देता था अलमारी । नारि सुता सुत पोता पोती आज्ञा मे थे घर वाले, नाते रिश्तेदार करे थे स्वागत पर जीजा शाले ॥ सबको राखि प्रसन्न किया करता अपनी मनमानी को |हाय० ६।।