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________________ ( २५) तो ज्ञानी भी कहने सुने-देखे जाने हैं। तो क्या ज्ञानियो को भी जीवतत्त्व सम्बन्धी जीव की मूलरुप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि होते है ? उ०-ज्ञानियो को बिलकुल नही होते । (१) क्योकि जिन, जिनवर और जिनवरबृषओ ने शरीर की अनुकुलता से मै सुखी और शरीर की प्रतिकुलता से मै दुखी- ऐसी खोटी मान्यता को जीवतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल रुप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया है, परन्तु ऐसे कथन को नहीं कहा है। (२) ज्ञानी जो बनते है वे जीवतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल रुप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव करके ही बनते है। (३) ज्ञानियो को हेय-ज्ञेय-उपादेय का ज्ञान वर्तता है। (४) गरीर की अनुकूलता से मै सुखी और शरीर की प्रतिकुलता से मै दुखी-ज्ञानियो के ऐसे कथन को आगम मे अनुपचरित असद्भुत व्यवहारनय कहा है। प्र०६-निर्धन होने से मै दुःखी और राजा होने से मै सुखी-इस वाक्य पर जीवतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिए। उ०-प्रश्नोत्तर १ से ८ तक के अनुसार उत्तर दो । प्र० १०-मेरे पास धन होने से मै सुखी और मेरे पास धन न होने से मै दुःखी। इस वाक्य पर जीवतत्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिए। उ०-प्रश्नीत्तर १ से ८ तक के अनुसार उत्तर दो। प्र० ११-मेरा बडप्पन होने से मै सुखी और मेरा बडप्पन न होने से मै दुःखी। इस वाक्य पर जीवतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिए। उ०-प्रश्नोत्तर १ से ८ तक के अनुसार उत्तर दो।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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