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________________ दूसरा अधिकार छहढाला की प्रथम तीन ढालो पर प्रयोजनभूत सात तत्वो का १३० प्रश्नोत्तरो द्वारा समाधान जीवतत्त्व संबंधी जोव की भूल का सपष्टीकरण प्र० १ - अज्ञानी अपने को सुखी दुःखी किसे मानता है ? उ०- शरीर की अनुकूलता से मैं सुखी और शरीर की प्रतिकूलता से मैं दुखी - ऐसा मानता है । प्र० २ - शरीर की अनुकूल अवस्था से मै सुखी और प्रतिकूल अवस्था से मै दु.खी - ऐसी मान्यता को छहढाला की प्रथम ढाल में क्या बताया है ? उ०- "मोह महामद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि । " अर्थात वीतराग विज्ञानता रूप निज शुद्ध आत्मा को भूलकर शरीर की अनुकूल अवस्था से मै सुखी और प्रतिकूल अवस्था से मै दुखीऐसी मान्यता को मोहरूपी महा मदिरापान बताया है । प्र० ३ - शरीर की अनुकूल अवस्था से मै सुखी और प्रतिकूल अवस्था से मै दुःखी ऐसी मान्यता को मोहरूपी महामदिरापान छहढाला की प्रथम ढाल मे क्यों बताया है ? उ०- (१) तराजू के एक पलडे मे स्वय वीतराग विज्ञानता रूप एक ज्ञायक शुद्ध आत्मा । ( २ ) तराजू के दूसरे पलडे मे शरीर की अनुकूलता और प्रतिकुलता रुप अवस्था आहारवर्गणा का कार्य है । (३) इन सब मे एकत्वबुद्धि होने से शरीर की अनुकूलता से मै सुखी
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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