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( २५७ ) प्र० ४७-क्या करें तो परिभ्रमण का अभाव हो?
उत्तर-तू भगवान है। तेरे भगवान से किसी का भी सर्वथा सम्बन्ध नही है। इतना जानते-मानते ही ससार का अभाव, मोक्षमार्ग की प्राप्ति और क्रम से निर्वाण की ओर गमन-वस।
प्र० ४८-क्या विश्व के द्रव्यो की पर्याय व्यवस्थित ही है ?
उत्तर-हाँ । विश्व के प्रत्येक द्रव्य और गुण की पर्याय व्यवस्थित ही है । जिस प्रकार मोती की माला मे जो मोती जहाँ पर व्यवस्थित है उसी प्रकार जिस पर्याय का जो जन्मक्षण है चाहे वह पर्याय विकारी हो या अविकारी हो वह व्यवस्थित और क्रमबद्ध ही है।
प्र० ४६-विश्व के द्रव्य-गुणो की विकारी अविकारी पर्याय व्यवस्थित और क्रमवद ही है-इसको जानने-मानने से क्या लाभ होना चाहिये ?
उत्तर-दृष्टि स्वभाव पर होना, चारो गतियो का अभाव होना ही इसको जानने-मानने का लाभ है। जब विश्व की पर्याय क्रमवद्ध
और व्यवस्थित ही है ऐसा जानने-मानने वाला केवली के समान ज्ञातादृष्टा बन गया । पच परमेष्ठियो की श्रेगी मे आ गया।
प्र० ५०-ज्ञान पर्याय ग्राहक और ग्राह्य क्या है ?
उत्तर-अरे भाई अनादिकाल से अज्ञानी जीव की जान पर्याय जो ग्राहक है वह रुपी पदार्थों को ग्राह्य बनाती है जब ऐसा माना कि रूपी पदार्थो से शरीर से जरा भी सम्बन्ध नहीं है तब ज्ञान की पर्याय स्वयमेव ज्ञायक की तरफ चली जाती है। अरे भाई यह कार्य आसान है, सहजरूप है।
प्र० ५१-सात तत्वो मे क्या बताना है ?
उत्तर-(१) जीव तत्व मे क्या बताना है ? तू ज्ञान-दर्शनादि अनन्त गुणो का पुज भगवान आत्मा है । (२) अजीव तत्व मे क्या बताना है ? विश्व मे अजीव तत्व है परन्तु तेरा अजीव तत्व से