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प्राप्ति करे तो त्रस - स्थावर ना होकर क्रम से मोक्ष की प्राप्ति हो ।
प्र० ३०० - मनुष्य भव व दिगम्बर धर्म होने पर भी क्या यह जीव पृथ्वीकाय कहला सकता है और यह पृथ्वीकाय मे क्यो जाता है ?
उत्तर - (१) जैसे हम पृथ्वीकाय पर चलते है । दवने से जो दुख का वह अनुभव करता है, लेकिन वह कुछ कह नही सकता है, उसी प्रकार मनुष्य भव व दिगम्बर धर्म होने पर भी मै सब को दवाऊ और कोई मेरे सामने एक शब्द भी उच्चारण ना कर सके । ऐमा भाव करता है उस समय वह पृथ्वीकाय ही है क्योकि "जैसी मति वैसी गति" होती है । (२) ऐसे भाव के समय यदि आयु बन्ध हो गया तो " पृथ्वीकाय" की योनि मे जाना पडेगा । जहाँ निरन्तर तुझे सब दबायेगे और तू एक शब्द भी उच्चारण न कर सकेगा ।
प्र० ३०१ - कोई कहे हमें पृथ्वीकाय न बनना पडे उसका क्या उपाय है ?
उत्तर - मै सब को दबाऊ और मेरे सामने एक शब्द भी उच्चारण ना कर सके, ऐसे भाव रहित अस्पर्श शुद्ध बुद्ध स्वभावी निज भगवान है । उसका आश्रय ले तो भगवान पना पर्याय मे प्रगट हो जावेगा । प्र० ३०२ - मनुष्य भव व दिगम्बर धर्म होने पर भी क्या यह जीव जलकाय कहला सकता है और यह जलकाय में क्यों जाता है ?
उत्तर- (१) जैसे तालाब का पानी ऊपर से देखने पर एक जैसा लगता है । लेकिन कही दो गज का खड्डा है, कही तीन गज का खड्डा है, कही ऊचा है, कही नीचा है, उसी प्रकार मनुष्य भव व दिगम्बर धर्म होने पर भी ऊपर से चिकनी-चुपडी बाते करता है, अन्दर कपट रखता है । वह जीव उस समय 'जलकाय' ही है, क्योकि " जैसी मति वैसी गति" होती है । ( २ ) ऐसे भाव के समय यदि आयु का वन्ध हो गया तो 'जलकाय' की योनि मे जाना पडेगा ।